सरोज खान को याद करते हुए: वो गाना जिसे पहले वो पसंद नहीं करती थीं
सरोज खान का नाम सुनते ही दिमाग में तुरंत वो यादगार नृत्य आ जाते हैं जिन्होंने बॉलीवुड के कई गानों को अमर बना दिया। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उन्हीं के करियर का एक ऐसा गाना भी है जिसे पहली बार सुनकर उन्हें बिल्कुल पसंद नहीं आया था? ये गाना है “अंखियाँ मिलाऊँ कभी” – राजा (1995) से, जो आज भी शादियों और पार्टियों में धूम मचाता है।
हाल ही में लिरिकिस्ट समीर ने एक इंटरव्यू में इसके पीछे की दिलचस्प कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि जब ये गाना रिकॉर्ड हो रहा था, तो सरोज खान ने इसे सुनकर नाराजगी जताई थी। शायद उन्हें लगा कि ये ट्रैक उनकी कला के लायक नहीं है।
“एक ही इंस्ट्रूमेंट… मैं इसमें क्या शूट करूँगी?”
समीर ने याद किया कि सरोज खान स्टूडियो में आईं और गाना सुनते ही उनका रिएक्शन काफी तीखा था। उन्होंने कहा, “नदीम, तुमने ये क्या बना दिया? पूरे गाने में बस एक ही इंस्ट्रूमेंट चल रहा है। मैं इसमें क्या नृत्य बनाऊँगी?”
ये सुनकर शायद किसी को भी लग सकता था कि गाना फ्लॉप हो जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सरोज खान ने आखिरकार इसे अपने अंदाज़ में चोरियों और नज़रों के इशारों से भर दिया। और आज? ये गाना उनकी सबसे यादगार रचनाओं में से एक है।
क्या चीज़ बदल गई?
शायद गाने की सादगी ही उसकी सबसे बड़ी खूबी थी। बार-बार बजने वाला वही एक इंस्ट्रूमेंट लूप, लेकिन उस पर डांस में लहराती चुप्पी और अदाएं – यही गाने की आत्मा बन गई।
समीर के अनुसार, बाद में सरोज खान ने खुद माना था कि
“इस गाने ने मुझे गलत साबित कर दिया। यह सबसे मुश्किल सीन को आसान बनाने का सबक था।”
एक विरासत की झलक
“अंखियाँ मिलाऊँ कभी” सिर्फ एक गाना नहीं, बल्कि एक उदाहरण है कि कैसे एक कलाकार की शुरुआती नापसंदगी भी अंत में क्लासिक बन सकती है। सरोज खान ने इसे अपने जादुई स्पर्श से संवारा और यह आज भी उनके करियर की सबसे यादगार कोरियोग्राफ़ी मानी जाती है।
यह गाना साबित करता है कि एक रचनात्मक कलाकार चाहे तो किसी भी सादे टुकड़े को खूबसूरती से सजाकर अमर बना सकता है—जैसा कि सरोज खान ने किया।