नई दिल्ली, 25 अक्टूबर 2025।
भारत के डिजिटल भुगतान परिदृश्य में एक नया संदर्भ प्रस्तुत करते हुए, Foundation for Interoperability in Digital Economy (FIDE) के CEO एवं संस्थापक Sujit Nair ने बताया कि UPI अब सिर्फ एक भुगतान तकनीक नहीं रहा-यह “जन स्तर पर बनी आदत” बन गया है। इसके साथ उन्होंने डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) की भूमिका पर गंभीर प्रकाश डाला।
मुख्य बातें
- Sujit Nair ने कहा कि UPI अब “only a technology” नहीं रहा, बल्कि 500 मिलियनों से अधिक लोगों में “जीवन-शैली की एक आदत” बन चुका है।
- उन्होंने DPI की भूमिका को रेखांकित किया, जिसमें UPI, Aadhaar और Open Network for Digital Commerce (ONDC) जैसे तंत्र शामिल हैं, जो अर्थव्यवस्था में अनौपचारिक सेक्टर को formal economy से जोड़ते हैं।
- Nair ने बताया कि ONDC जैसे डिज़ाइन किए गए DPI प्लेटफॉर्म विक्रेताओं, ड्राइवरों और छोटे व्यावसायियों को अधिक विकल्प एवं स्वायत्तता प्रदान करते हैं, मध्यस्थों पर निर्भरता घटाते हैं।
- उन्होंने यह भी इशारा दिया कि भारत ने अपनी DPI क्षमताओं को वैश्विक स्तर पर साझा करने के लिए MoU किए हैं-जिसका मतलब है कि UPI-मॉडल अब “भारत तक सीमित नहीं” बल्कि वैश्विक प्रेरणा बन चुका है।
क्या हुआ
संजय गांधी टेक्नॉलजी समिट में एक प्रमुख सत्र के दौरान Sujit Nair ने संवाददाताओं को बताया कि UPI अब उस तकनीक से बढ़ कर है जिसे ‘सिर्फ भुगतान’ के लिए इस्तेमाल किया जाता था। उन्होंने कहा:
“UPI is no more a technology in some sense. UPI is a population-scale habit. You have 500 million people using DPI, UPI as a way of life…”
यह बयान उस वक़्त आया है जब भारत की डिजिटल पटल पर भुगतान, पहचान और वाणिज्य का एकीकृत ढांचा तेजी से आकार ले रहा है। Nair ने इसे DPI के व्यापक विजन-हिस्से के रूप में देखा, जिसमें तंत्र (infrastructure) समाज और अर्थव्यवस्था दोनों के केंद्र बने हैं।
प्रमुख तथ्य / आंकड़े
- भारत में UPI-सेवाओं का उपयोग अब 500 मिलियन (50 करोड़) से अधिक लोगों द्वारा किया जा रहा है।
- ONDC जैसे प्लेटफॉर्म छोटे व्यापारियों और स्थानीय दुकानदारों को “अपने ही terms पर भागीदारी” का अवसर दे रहे हैं, जिससे डिजिटल समावेशन बढ़ रहा है।
- DPI की दृष्टि से भारत ने मूल पहचान (Aadhaar), भुगतान (UPI) और वाणिज्य (ONDC) को मिलाकर ‘ecosystem’ तैयार किया है, जिसे अन्य देशों ने भी अपनाना शुरू कर दिया है।
- हालांकि, Nair ने यह भी चेतावनी दी कि डेटा-गोपनीयता, प्लेटफॉर्म-इंटरऑपरेबिलिटी और “सबका समावेश” जैसे मसले अब भी चुनौती बने हुए हैं।
बयान या प्रतिक्रियाएँ
Sujit Nair ने इस विषय पर कहा:
“Digital public infrastructure (DPI) can put people, businesses in centre and give them access, opportunity, choices to participate in a formal economy and expand the pie for everybody and for the market overall.”
उनका यह कथन यह संकेत देता है कि UPI-वापसी भुगतान से अधिक एक सामाजिक-आर्थिक प्लेटफॉर्म बन गया है, जो दुनिया-स्तर की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
विश्लेषकों का कहना है कि यह उद्धरण दिखाता है कि भारत की डिजिटल पहल अब सिर्फ देशभितर नहीं बल्कि वैश्विक संदर्भ में मानक बन रही है।
वर्तमान स्थिति / आगे क्या होगा
अब Sujit Nair के वक्तव्य के बाद सवाल ये उठता है कि अगला कदम क्या होगा?
- UPI और DPI मॉडल को अन्य देशों में कैसे अपनाया जाएगा, यह देखने की जरूरत है।
- भारत में DPI-मॉडल से लाभ न उठा पाए हिस्सों-जैसे ग्रामीण इलाकों, महिला-उद्यमियों और अनौपचारिक क्षेत्र-तक पहुँच कैसे बढ़ाई जाए।
- डेटा-प्राइवेसी, इंटरऑपरेबिलिटी और प्लेटफॉर्म-नगर-सकलता जैसे क्षेत्रों में नीति-संरचना और निगरानी कैसे सुनिश्चित हो।
यदि इन बिंदुओं पर ठोस प्रगति होती है, तो UPI-मॉडल न केवल भारतीय अर्थव्यवस्था को बल्कि वैश्विक डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत को अग्रणी स्थिति दे सकता है।
प्रसंग / पृष्ठभूमि
भारत की डिजिटल क्रांति में UPI का योगदान उल्लेखनीय है। 2016 के बाद से इस प्रणाली ने लाखों लोगों को वित्तीय समावेशन की दिशा में जोड़ा है। अब Sujit Nair जैसे विशेषज्ञ इसे ‘जल्दी बदलने वाली तकनीक’ से ‘दैनिक जीवन की आदत’ तक ले गए दिख रहे हैं।
विशेष रूप से, ONDC और अन्य DPI पहलें इस बात का प्रमाण हैं कि भारत सिर्फ तकनीक नहीं बल्कि शासन-वित्त-वाणिज्य-लोकल व्यवसाय को डिजिटल रूप देने की दिशा में अग्रसर है।
यदि यह ट्रेंड सफल रहता है, तो भारत की डिजिटल रणनीति अन्य विकासशील देशों के लिए मॉडल बन सकती है—और इस संदर्भ में Sujit Nair के विचार महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं।
स्रोत: Economic Times, StartupNews





