आरबीआई ने भारत के लिए वित्तीय स्थिति सूचकांक (एफसीआई) का प्रस्ताव रखा
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने देश के वित्तीय स्वास्थ्य की रीयल-टाइम निगरानी के लिए एक नया उपाय सुझाया है। हालिया एक अध्ययन में आरबीआई ने ‘फाइनेंशियल कंडीशंस इंडेक्स’ (एफसीआई) बनाने का प्रस्ताव रखा है, जो रोज़ाना के आधार पर वित्तीय बाज़ारों की स्थिति को मापेगा। यह सूचकांक मनी मार्केट, जी-सेक, कॉर्पोरेट बॉन्ड, इक्विटी और विदेशी मुद्रा बाज़ार जैसे प्रमुख क्षेत्रों के आंकड़ों को समेटेगा।
क्यों ज़रूरी है यह सूचकांक?
आरबीआई के मुताबिक, एफसीआई 2012 के बाद से वित्तीय स्थितियों के ऐतिहासिक औसत के मुकाबले बाज़ार में कितनी सख्त या आसान परिस्थितियां हैं, इसका संकेत देगा। यह पॉलिसीमेकर्स, विश्लेषकों और निवेशकों को फैसले लेने में मदद कर सकता है। शायद इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह संकट के दौरान भी सटीक जानकारी देने में सक्षम होगा।
अध्ययन में कहा गया है, “एफसीआई ने भारत में वित्तीय स्थितियों की गतिविधियों को शांत समय और संकट दोनों ही दौरान ट्रैक किया है। महामारी के बाद के दौर में, सभी बाज़ार खंडों में अनुकूल परिस्थितियों के कारण वित्तीय हालात असाधारण रूप से आसान थे।”
कैसे काम करेगा एफसीआई?
सूचकांक 20 वित्तीय संकेतकों पर आधारित होगा, जिन्हें रोज़ाना अपडेट किया जाएगा। एफसीआई का मूल्य जितना अधिक होगा, वित्तीय स्थितियां उतनी ही सख्त मानी जाएंगी। मिसाल के तौर पर, जुलाई 2013 के अंत में ‘टेपर टैंट्रम’ के दौरान एफसीआई 2.826 था, जो ऐतिहासिक औसत से लगभग 3-स्टैंडर्ड डेविएशन ज़्यादा था। वहीं, जून 2021 में यह -2.197 पर पहुंच गया, जो कोविड के बाद की आसान परिस्थितियों को दर्शाता है।
संकटों ने कैसे बदली वित्तीय स्थितियां?
एफसीआई के उतार-चढ़ाव प्रमुख घटनाओं से जुड़े हैं। 2013 के ‘टेपर टैंट्रम’ के दौरान बॉन्ड और फॉरेक्स मार्केट ने वित्तीय स्थितियों को सख्त बनाने में अहम भूमिका निभाई। वहीं, आईएलएंडएफएस संकट (2018) के दौरान बॉन्ड और इक्विटी मार्केट प्रमुख कारक थे। अध्ययन के अनुसार, “सितंबर 2018 में आईएलएंडएफएस के डिफॉल्ट ने बॉन्ड मार्केट में दहशत फैला दी, जिससे क्रेडिट रिस्क प्रीमियम बढ़ गया।”
कोविड-19 की शुरुआत में भी एफसीआई में तेज़ उछाल देखा गया। अध्ययन में कहा गया, “महामारी के चलते आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियां ठप हो गईं, जिससे बाज़ारों में अभूतपूर्व उथल-पुथल हुई। इक्विटी और कॉर्पोरेट बॉन्ड मार्केट में भारी गिरावट ने वित्तीय स्थितियों को सख्त बना दिया।”
हालिया रुझान और भविष्य
मध्य-2023 से वित्तीय स्थितियां अपेक्षाकृत आसान बनी हुई थीं, लेकिन नवंबर 2024 से इसमें कड़कड़ाहट आई। अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों के बाद ‘यूएस एक्सेप्शनलिज्म’ बढ़ने से इक्विटी, बॉन्ड और मनी मार्केट पर दबाव पड़ा। मार्च 2025 की शुरुआत में एफसीआई चरम पर पहुंच गया, लेकिन अब यह ऐतिहासिक औसत के करीब लौट आया है।
इस दौरान आरबीआई द्वारा बाज़ार में तरलता बढ़ाने, पॉलिसी रेट और स्टांस में बदलाव, साथ ही इक्विटी और जी-सेक मार्केट में तेज़ी ने वित्तीय स्थितियों को आसान बनाए रखने में मदद की।
क्या होगा असर?
अगर यह सूचकांक लागू होता है, तो शायद यह भारत के वित्तीय बाज़ारों को समझने का एक नया तरीका बन जाएगा। लेकिन यह भी देखना होगा कि बाज़ार के प्रतिभागी इसका कितना उपयोग करते हैं। फिलहाल, यह एक महत्वपूर्ण कदम है जो भारत के वित्तीय परिदृश्य को और पारदर्शी बना सकता है।