सुनिल गावस्कर ने कॉन्कशन सब्स्टीट्यूट नियम को लेकर ठोका तीखा प्रहार, कहा- अक्षम बल्लेबाजों के लिए है यह कुशन
सुनील गावस्कर ने कॉन्कशन सब्स्टिट्यूट नियम पर जताई आपत्ति
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और दिग्गज बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने इंग्लैंड के खिलाफ चौथे टेस्ट के दौरान कॉन्कशन सब्स्टिट्यूट नियम पर सख्त आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे ‘अयोग्य’ बल्लेबाजों के लिए एक तरह का ‘सहारा’ बताया, जो शॉर्ट-पिच गेंदबाजी का सामना नहीं कर पाते।
गावस्कर के ये बयान ऐसे समय में आए हैं जब भारतीय विकेटकीपर रिषभ पंत ने मैनचेस्टर टेस्ट में पैर की अंगुली फ्रैक्चर होने के बावजूद शानदार वापसी करते हुए अर्धशतक जमाया। सोनी स्पोर्ट्स पर बात करते हुए गावस्कर ने मौजूदा नियमों पर सवाल उठाए, जिसके तहत पंत की जगह ध्रुव जुरेल को केवल फील्डिंग के लिए ही टीम में शामिल किया जा सका।
‘टेस्ट क्रिकेट खेलने लायक नहीं तो मत खेलो’
गावस्कर ने कहा, “मेरा हमेशा से मानना रहा है कि ये नियम अक्षमता के लिए एक सहारा है। अगर आप शॉर्ट-पिच गेंदबाजी खेलने में सक्षम नहीं हैं, तो टेस्ट क्रिकेट मत खेलिए। टेनिस या गोल्फ खेलिए।” उन्होंने 2019 में लागू हुए इस नियम को लेकर ये टिप्पणी की।
लेकिन गावस्कर ने ये भी माना कि पंत जैसी चोटों के मामले में आईसीसी को नियमों में बदलाव की जरूरत है। पंत ने क्रिस वोक्स की गेंद पर रिवर्स स्विंग मारने की कोशिश में ये चोट झेली थी।
‘आईसीसी को बनानी चाहिए नई कमिटी’
गावस्कर ने सुझाव दिया, “इस मामले में एक अलग कमिटी बनाई जानी चाहिए। आईसीसी की क्रिकेट कमिटी है, लेकिन वो सुव्रत गांगुली के नेतृत्व में है। आईसीसी के चेयरमैन जय शाह हैं और सीईओ संजोग गुप्ता हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हम नहीं चाहेंगे कि मीडिया ये कहे कि भारतीयों के दबाव में नियम बदले गए। इसलिए डॉक्टरों और विशेषज्ञों की एक स्वतंत्र कमिटी इस पर विचार करे।”
पहले भी उठाए हैं सवाल
ये पहली बार नहीं है जब गावस्कर ने कॉन्कशन सब्स्टिट्यूट नियम को लेकर आपत्ति जताई है। इसी साल की शुरुआत में, उन्होंने टीम मैनेजमेंट पर निशाना साधा था जब शिवम दुबे की जगह हर्षित राणा को टीम में शामिल किया गया था।
गावस्कर ने तब ‘द टेलीग्राफ’ में अपने कॉलम में लिखा था, “दुबे और राणा में ‘लाइक-फॉर-लाइक’ की कोई समानता नहीं है। अगर मजाक में कहें तो वे लंबाई में बराबर हैं और फील्डिंग में समान स्तर के हैं। वरना उनमें कोई समानता नहीं।”
क्या हो सकता है समाधान?
क्रिकेट विशेषज्ञों का मानना है कि नियमों में लचीलापन होना चाहिए, लेकिन साथ ही इसका दुरुपयोग रोकने के उपाय भी जरूरी हैं। शायद आईसीसी को चोटों के प्रकारों को परिभाषित करना चाहिए और उसी के आधार पर प्रतिस्थापन की अनुमति देनी चाहिए।
गावस्कर की टिप्पणियां एक बार फिर इस बहस को जन्म दे रही हैं कि क्रिकेट के पारंपरिक नियमों और आधुनिक जरूरतों के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए। फिलहाल, पंत की बहादुरी और गावस्कर की स्पष्टवादिता दोनों ही चर्चा का विषय बने हुए हैं।