गुजरात की भुमिका सोराथिया की कहानी: एक टेलीग्राम ग्रुप ने ले ली जान
25 साल की भुमिका सोराथिया शायद कभी नहीं सोचती होगी कि एक टेलीग्राम ग्रुप ज्वाइन करने का फैसला उसकी जान ले लेगा। गुजरात की रहने वाली भुमिका, जो IIFL बैंक में काम करती थी, एक ऐसे ग्रुप का हिस्सा बनी जो छोटे-छोटे काम करने के बदले पैसे देने का वादा करता था। शुरुआत में उसे कुछ रकम मिली भी, लेकिन धीरे-धीरे उसे बड़ी रकम इन्वेस्ट करने के लिए उकसाया गया। आखिरकार, वह 28 लाख रुपए के कर्ज में फंस गई। और एक दिन, उसने खुदकुशी कर ली।
ऑनलाइन टास्क स्कैम क्या है?
इसे “टास्क-बेस्ड जॉब स्कैम” भी कहा जाता है। धोखेबाज व्हाट्सएप या टेलीग्राम के जरिए लोगों को छोटे-छोटे ऑनलाइन काम करने के बदले पैसे देने का लालच देते हैं। शुरुआत में वे विश्वास जीतने के लिए कुछ पैसे दे देते हैं, लेकिन असली मकसद होता है पीड़ित को बड़ी रकम इन्वेस्ट करवाना, जो कभी वापस नहीं मिलती।
ये स्कैम कैसे काम करते हैं?
इंडियनएक्सप्रेस.कॉम ने ऐसे कई लोगों से बात की जो इस तरह के टेलीग्राम या व्हाट्सएप ग्रुप्स का हिस्सा रहे हैं। राक्षित (नाम बदला हुआ) को याद नहीं कि वह ग्रुप में कैसे शामिल हुआ, लेकिन एडमिन ने उसे एक “एजेंट” से जोड़ दिया। एजेंट ने एक डेमो टास्क दिया, और उसे पूरा करने पर राक्षित को करीब 200 रुपए मिले। धीरे-धीरे टास्क्स की संख्या बढ़ती गई—रोज 20 टास्क। काम आसान थे: किसी प्रोडक्ट या जगह को पांच स्टार रेटिंग देना, यूट्यूब वीडियो पर लाइक करना, या फिर किसी टेक्स्ट का ट्रांसलेशन करना। लेकिन राक्षित के मुताबिक, असली जाल तब बिछाया जाता है जब एडमिन आपसे पैसे इन्वेस्ट करने को कहता है।
वैभव (नाम बदला हुआ) को पहले कुछ टास्क्स के लिए 150 रुपए मिले। लेकिन फिर उससे 3,000 रुपए जमा करने को कहा गया, जिसके बाद हर टास्क पर 1,000 रुपए मिलने का वादा किया गया। वैभव ने तुरंत पीछे हटते हुए कहा, “मुझे लगा कि यह स्कैम है। वे मेरा पैसा लेकर गायब हो जाएंगे।”
प्रणव (नाम बदला हुआ) इतने भाग्यशाली नहीं थे। उन्हें पांच फेक गूगल रिव्यू लिखने के लिए 250 रुपए मिले। फिर एक “मास्टर टास्क” आया: 1,470 रुपए इन्वेस्ट करो और 4,500 रुपए कमाओ। प्रणव ने 5,000 रुपए गंवाए, इससे पहले कि उन्हें एहसास होता कि यह धोखा है।
शुभम (नाम बदला हुआ) का अनुभव अलग है। वह जानता है कि ये स्कैम कैसे काम करते हैं। वह शुरुआती पेड टास्क्स पूरे करता है, और जैसे ही इन्वेस्टमेंट की बात आती है, ग्रुप छोड़ देता है। वह हंसते हुए कहता है, “संक्षेप में, मैं स्कैमर्स को स्कैम करता हूँ।”
ये स्कैम इतने कामयाब क्यों होते हैं?
मध्य प्रदेश की बैतूल पुलिस के साइबर एक्सपर्ट दीपेंद्र सिंह ने बताया, “घर पर ज्यादा समय बिताने वाले लोग, जैसे नौकरी की तलाश में युवा या गृहिणियां, आसान शिकार होते हैं। स्कैमर्स एक साधारण मैसेज से शुरुआत करते हैं, जिसमें आसान कमाई का वादा होता है। पीड़ितों को तब तक पता नहीं चलता कि यह जाल है, जब तक कि वे बहुत गहरे में नहीं फंस जाते।”
सिंह ने बताया कि स्कैमर्स पहले छोटी-छोटी रकम भेजकर विश्वास जीतते हैं। फिर जब पीड़ित आश्वस्त हो जाता है, तो उसे बड़ी रकम इन्वेस्ट करने को कहा जाता है। स्कैमर्स अक्सर फेक वेबसाइट्स पर भेजते हैं, जहां नकली कमाई और प्रोफाइल्स दिखाई जाती हैं, ताकि सब कुछ वैध लगे।
कैसे पहचानें ऐसे स्कैम?
साइबर एक्सपर्ट दीपेंद्र सिंह और एडवोकेट तुषार शर्मा (TOFEE के सह-संस्थापक) ने कुछ चेतावनी के संकेत बताए:
– अवास्तविक कमाई: एक लाइक या रिव्यू के 100 रुपए, या रोज 5,000 रुपए कमाने का वादा—यह सच नहीं हो सकता।
– जानकारी की कमी: कंपनी की कोई वेबसाइट, फिजिकल एड्रेस या हेल्पलाइन नहीं होती।
– सिर्फ टेलीग्राम/व्हाट्सएप: कोई प्रोफेशनल ईमेल या कॉन्ट्रैक्ट नहीं होता।
– दबाव बनाने की कोशिश: “सिर्फ 5 मिनट बचे हैं!” या “लिमिटेड स्लॉट्स