भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णय में विहान कुमार की गिरफ्तारी को असंवैधानिक करार देते हुए रद्द कर दिया है। कोर्ट ने माना कि 10 जून 2024 को हुई उनकी गिरफ्तारी संविधान के अनुच्छेद 22(1) का उल्लंघन थी। यह फैसला न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति नोंगमीकपम कोटिश्वर सिंह की पीठ ने दिया, जो पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के 30 अगस्त 2024 के निर्णय को चुनौती देने वाली आपराधिक अपील संख्या 13320/2024 में सुनाया गया।
पृष्ठभूमि: गिरफ्तारी और कानूनी चुनौती
विहान कुमार को एफआईआर संख्या 121/2023 के तहत गिरफ्तार किया गया था, जिसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 409, 420, 467, 468, 471 तथा 120-बी के अंतर्गत धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए थे। उन्होंने दावा किया कि न तो उन्हें उनकी गिरफ्तारी के कारण बताए गए और न ही उन्हें गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया — जो कि संविधान के अनुच्छेद 22(2) और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 57 का स्पष्ट उल्लंघन है।
संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन
सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी के समय व्यक्ति को उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों की जानकारी देना एक संवैधानिक बाध्यता है। पीठ ने पंकज बंसल बनाम भारत संघ और प्रबीर पुरकायस्थ बनाम राज्य (दिल्ली) जैसे मामलों का हवाला देते हुए कहा कि ऐसा न करना गिरफ्तारी को असंवैधानिक बनाता है।
सीनियर अधिवक्ता कपिल सिब्बल और श्याम दीवान के नेतृत्व में विहान कुमार की ओर से पेश हुए वकीलों ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी की सूचना केवल उनकी पत्नी को दी गई थी, स्वयं विहान कुमार को नहीं। अधिवक्ताओं अर्चित सिंह और जैस्मिन डमकेवाला ने इसे अनुच्छेद 22(1) का सीधा उल्लंघन बताया। कोर्ट ने इस बात से सहमति जताई और कहा कि रिश्तेदार को सूचना देना पर्याप्त नहीं है — यह सूचना सीधे उस व्यक्ति को दी जानी चाहिए जिसे गिरफ्तार किया गया है।
PGIMS रोहतक में हिरासत में अमानवीय व्यवहार
विहान कुमार को पीजीआईएमएस रोहतक में अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान हथकड़ियों और जंजीरों से बांध दिया गया था। अस्पताल के मेडिकल अधीक्षक ने एक हलफनामे में इसकी पुष्टि की। सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह के व्यवहार पर कड़ी आपत्ति जताते हुए हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हों, इसके लिए कड़े दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश और दिशानिर्देश
- तत्काल रिहाई: कोर्ट ने गिरफ्तारी को अमान्य घोषित करते हुए विहान कुमार को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया।
- ट्रायल पर कोई प्रभाव नहीं: कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह फैसला केवल गिरफ्तारी की वैधता से संबंधित है, और इसका चल रहे ट्रायल या चार्जशीट पर कोई असर नहीं होगा।
- हिरासत सुधार: हरियाणा पुलिस को यह निर्देश दिया गया कि वे विशेष रूप से अस्पतालों में हिरासत में लिए गए लोगों के साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने के लिए सख्त प्रोटोकॉल बनाएं।
- मजिस्ट्रेट की जिम्मेदारी: कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के बाद मजिस्ट्रेट को यह व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करना होगा कि अनुच्छेद 22(1) का पूर्ण पालन हुआ है, तभी रिमांड दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति ओका ने कहा, “किसी व्यक्ति को बिना गिरफ्तारी के कारण बताए गिरफ्तार करना अनुच्छेद 21 और 22 दोनों का उल्लंघन है।” अधिवक्ता अर्चित सिंह ने कहा कि यह फैसला नागरिक स्वतंत्रताओं के ढांचे को मजबूत करता है, जबकि जैस्मिन डमकेवाला ने इसे एक स्पष्ट संदेश बताया कि “प्रक्रियात्मक उल्लंघनों को अब नजरअंदाज नहीं किया जाएगा।”
यह निर्णय व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा के लिए एक अहम मिसाल बनाता है और यह दर्शाता है कि न्यायपालिका नागरिकों को राज्य की अवैध कार्रवाइयों से सुरक्षा प्रदान करने में तत्पर है।