पाकिस्तानी क्रिकेट टीम को रिवर्स स्विंग की आध्यात्मिक जन्मभूमि कहा जाता है। सरफ़राज़ नवाज़ और इमरान खान ने इस कला की शुरुआत की, वहीं वसीम अकरम और वकार यूनिस ने इसे बेहद घातक बना दिया। लेकिन यह सब आसान नहीं था। अब एक पॉडकास्ट में, वसीम अकरम ने खुलासा किया है कि गेंद को रिवर्स करवाने के लिए पूरी टीम की कितनी बड़ी भूमिका होती थी, और किस तरह की कुर्बानियाँ देनी पड़ती थीं।
जब रिवर्स स्विंग ‘बॉल टैम्परिंग’ था
वसीम अकरम ने ‘स्टिक टू क्रिकेट’ पॉडकास्ट में बताया कि 90 के दशक में दुनिया को रिवर्स स्विंग के बारे में कुछ भी पता नहीं था। शायद उस समय इसे सिर्फ गेंद से छेड़छाड़ ही माना जाता था। अकरम के शब्दों में, “उस वक्त किसी को नहीं पता था कि रिवर्स स्विंग क्या है। जाहिर तौर पर इसे बॉल टैम्परिंग समझा जाता था। और फिर अचानक सबने इसे सीख लिया, तो यह रिवर्स स्विंग बन गया, थैंक यू वेरी मच।” कहा जा सकता है कि उस दौर में यह पाकिस्तानी टीम का एक गुप्त हथियार था।
टीम का सामूहिक प्रयास
अकरम ने जोर देकर कहा कि रिवर्स स्विंग सिर्फ एक गेंदबाज की उपलब्धि नहीं, बल्कि पूरी टीम की मेहनत का नतीजा होता था। यह सिर्फ गेंद को पॉलिश करने भर की बात नहीं थी। इसमें मौसम, पिच, और आउटफील्ड की स्थिति जैसे कई कारक शामिल थे। अकरम ने समझाया, “यह मौसम पर निर्भर करता है, ग्राउंड के स्क्वेयर पर निर्भर करता है, कि वहाँ की सतह कैसी है, आउटफील्ड कितनी हरी-भरी है। पूरी टीम को इसमें शामिल होना पड़ता है।”
उन्होंने आगे कहा कि गेंद को सीधे विकेटकीपर या गेंदबाज के पास फेंका जाना चाहिए। एक बाउंस पर फेंकी गई गेंद नुकसानदेह हो सकती है। दरअसल, जितने कम हाथ गेंद को छुएँ, उतना ही बेहतर है।
गेंद के ‘खुरदुरे हिस्से’ का ख्याल
इस पूरी प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण नियम था – गेंद के खुरदुरे हिस्से को बिल्कुल न छूना। अकरम ने बताया कि जो खिलाड़ी गेंद को संभालते भी थे, उन्हें भी इसे सिर्फ उँगलियों की नोक से, सीम के पकड़कर रखना होता था। अगर हथेली उस खुरदुरे हिस्से को छू जाती, तो वह नरम पड़ जाता और रिवर्स स्विंग की संभावना खत्म हो जाती।
इस पर पूर्व इंग्लैंड कप्तान अलास्टेयर कुक ने भी सहमति जताई। उन्होंने कहा कि अगर आपको अपने हाथों पर भरोसा नहीं है, तो गेंद को छूना भी नहीं चाहिए। बस, कोई हाथ गेंद पर नहीं।
सनी दिनों की चाल
अकरम ने मौसम की भूमिका को भी रेखांकित किया। उनके मुताबिक, अगर दिन धूप वाला होता, तो जानबूझकर गेंद को एक बाउंस देकर रफ एरिया में फेंका जाता था। इससे गेंद के एक हिस्से पर खरोंचें आतीं, और फिर उसी हिस्से पर काम किया जाता था। यह एक सोची-समझी रणनीति थी।
सकलेन मुश्ताक को चेतावनी
शायद सबसे दिलचस्प किस्सा था ऑफ स्पिनर सकलेन मुश्ताक का। अकरम ने बताया कि मुश्ताक जैसे महान गेंदबाज को भी टीम की जरूरतों के आगे झुकना पड़ा। मुश्ताक की आदत थी कि डिलीवरी करने से पहले वह गेंद को हथेली में घुमाते थे। इससे गेंद का खुरदुरा हिस्सा नरम पड़ जाता था।
अकरम ने कहा, “महान सकलेन मुश्ताक, क्या बॉलर थे। वह अविश्वसनीय थे। पाकिस्तान के लिए उन्होंने कितने ही मैच जीते। लेकिन उनकी आदत थी गेंद को इस तरह घुमाने की (हाथ का इशारा करते हुए)। तो हमें उनसे कहना पड़ा, ‘दोस्त, अपनी आदत बदलो वरना हम तुम्हें टीम में नहीं खिला सकते।'” यह एक सख्त चेतावनी थी, लेकिन टीम की सामूहिक सफलता के लिए जरूरी थी।
सीखने की कहानी
अकरम ने खुद इस कला को सीखने की बात भी की। उन्होंने बताया कि वकार यूनिस ने तो पाकिस्तान टीम में आने से पहले ही इसे सीख लिया था। वहीं, अकरम को यह कला सबसे पहले मुदस्सर नज़र ने सिखाई और फिर इमरान खान ने इसे परफेक्ट किया। अकरम के अनुसार, मुदस्सर नज़र उस दौर में इतने समझदार थे कि इमरान खान या जावेद मियांदाद जैसे दिग्गज भी मैदान पर उनसे सलाह लिया करते थे।