छोटे कद के बल्लेबाजों को मिलता है यह फायदा, राहुल द्रविड़ ने गावस्कर-तेंदुलकर का उदाहरण दे समझाया
क्रिकेट की दुनिया में अक्सर बल्लेबाज़ी की तकनीक पर चर्चा होती है। स्टांस, ग्रिप, बैकलिफ्ट… हर छोटी बड़ी बात का विश्लेषण किया जाता है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि एक खिलाड़ी की लंबाई उसके खेल पर क्या असर डालती है? शायद नहीं। पर पूर्व भारतीय कप्तान और कोच राहुल द्रविड़ ने इस पर एक दिलचस्प बात कही है।
हाल ही में आशीष कौशिक के पॉडकास्ट ‘हाल चाल और सवाल’ पर बात करते हुए द्रविड़ ने अपने और दो दिग्गज बल्लेबाज़ों के बारे में कुछ ऐसा बताया जो शायद ही किसी ने गौर किया हो।
लंबाई का फर्क
राहुल द्रविड़ ने खुलासा किया कि उनकी अपनी लंबाई, जो करीब 1.80 मीटर है, कई बार उन्हें ‘अनकम्फर्टेबल’ महसूस कराती थी। दरअसल, बल्लेबाज़ी के दौरान उनका स्टांस और संतुलन बनाए रखना कई बार एक चुनौती जैसा रहा। यह बात उन्होंने दो महानतम बल्लेबाज़ों – सुनील गावस्कर और सचिन तेंदुलकर – की तुलना करते हुए कही। दोनों ही लगभग 1.65 मीटर लंबे हैं।
द्रविड़ के मुताबिक, लंबाई में कम होने का एक फायदा यह होता है कि खिलाड़ी का संतुलन अपने आप बेहतर हो जाता है। उन्होंने कहा, “छोटे कद के लोगों को संतुलन बनाने में ज़्यादा आसानी होती है, क्योंकि उनका गुरुत्वाकर्षण केंद्र नीचे होता है। ऐसा कहा जाता है।”
गावस्कर का ‘स्टिलनेस’
द्रविड़ ने सुनील गावस्कर की बल्लेबाज़ी की एक खासियत बताई। उन्होंने कहा कि गावस्कर एक ‘ब्यूटीफुली बैलेंस्ड प्लेयर’ थे। जब भी वो क्रीज़ पर खड़े होते थे, उनमें एक अद्भुत ‘स्टिलनेस’ यानी स्थिरता दिखती थी। शायद यही वजह थी कि तेज़ गेंदबाज़ी का सामना करने में भी वो हमेशा इतने शांत और नियंत्रित दिखते थे।
यह स्थिरता ही थी जिसने द्रविड़ को हमेशा प्रभावित किया। हालाँकि, द्रविड़ ने यह भी माना कि अपने लंबे कद की वजह से वो गावस्कर की इस स्टाइल की नकल नहीं कर सकते थे।
तेंदुलकर का संतुलन
सचिन तेंदुलकर के बारे में भी द्रविड़ ने लगभग ऐसी ही बात कही। उन्होंने बताया कि सचिन भी क्रीज़ पर बेहद संतुलित और स्थिर दिखते थे। उनकी बल्लेबाज़ी में एक तरह का पॉइज़ दिखाई देता था, जो शायद उनकी लंबाई की वजह से और भी ज़्यादा निखर कर सामने आता था।
यहाँ तक कहा जा सकता है कि इस भौतिक फर्क ने उनकी खेल शैली को किसी हद तक परिभाषित भी किया। लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि लंबे खिलाड़ी अच्छे बल्लेबाज़ नहीं हो सकते। द्रविड़ खुद इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
द्रविड़ की अपनी चुनौती
द्रविड़ ने बताया कि उन्होंने हमेशा वही स्टांस अपनाया जो उन्हें सहज लगता था, भले ही वह देखने में परफेक्ट न लगे। उनके लिए आरामदेह महसूस करना सबसे ज़्यादा ज़रूरी था, न कि किसी और की नकल करना।
यह बात शायद हर युवा खिलाड़ी के लिए एक सबक है। हर शरीर की अपनी एक बनावट होती है। किसी की सफलता का फॉर्मूला बिना सोचे-समझे कॉपी करने से बेहतर है अपने लिए एक अनोखी और आरामदेह शैली विकसित करना। द्रविड़ ने यही किया और वो ‘द वॉल’ बन गए।
तकनीक से बढ़कर है मानसिकता
इस पूरी चर्चा से एक बात तो साफ है। क्रिकेट में तकनीक ज़रूर महत्वपूर्ण है, लेकिन शायद उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है अपनी शारीरिक सीमाओं और खूबियों को समझना। फिर चाहे वो सुनील गावस्कर की स्थिरता हो, सचिन तेंदुलकर का संतुलन हो या फिर राहुल द्रविड़ का अपने अनुसार ढल जाने का हुनर।
हर खिलाड़ी ने अपनी एक अलग पहचान बनाई। और शायद यही इस खेल की सुंदरता है – यहाँ कोई एक फिट-ऑल फॉर्मूला नहीं है। हर कोई अपने तरीके से महान बन सकता है।
द्रविड़ की यह बात न सिर्फ क्रिकेट, बल्कि हर खेल में खिलाड़ियों के लिए एक अहम सीख हो सकती है। कभी-कभी जो चीज़ आपकी कमज़ोरी लगती है, वही आपकी सबसे बड़ी ताकत बन जाती है। बस ज़रूरत है उसे पहचानने और उसके अनुसार खुद को ढालने की।