गीतकार समीर अंजान का बयान: ‘चोली के पीछे’ ने शुरू किया था विवादों का दौर?
भारतीय सिनेमा में गानों का महत्व हमेशा से रहा है। कई बार तो फिल्मों की कहानी से ज़्यादा, उनके गाने ही यादगार बन जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ सालों में इन्हीं गानों पर सवाल उठने लगे हैं। क्या वाकई कुछ पुराने गाने अब ‘प्रॉब्लमैटिक’ लगने लगे हैं? मशहूर गीतकार समीर अंजान ने हाल ही में इसी मुद्दे पर खुलकर बात की।
‘सरकाई लो खटिया’ से लेकर ‘खम्बे जैसी खड़ी है’ तक
समीर अंजान के लिखे गानों में ‘सरकाई लो खटिया’ (राजा बाबू) और ‘खम्बे जैसी खड़ी है’ (दिल) जैसे ट्रैक्स अक्सर चर्चा में रहे हैं। बीबीसी हिंदी से बातचीत में उन्होंने माना कि इन गानों के बोल आज के समय में सवालों के घेरे में हैं। लेकिन उनका कहना है कि यह ट्रेंड उन्होंने नहीं शुरू किया।
अनंद बख्शी और ‘चोली के पीछे’ का मामला
समीर ने सीधे तौर पर दिग्गज गीतकार अनंद बख्शी के लिखे गाने ‘चोली के पीछे’ (खलनायक) को ज़िम्मेदार ठहराया। उनका कहना है, “यह सारा विवाद वहीं से शुरू हुआ। उस वक्त भी लोगों ने बहुत हंगामा किया था। अनंद बख्शी और सुभाष घई को गालियाँ मिल रही थीं। लेकिन सेंसर बोर्ड ने उस गाने को पास कर दिया।”
वो आगे कहते हैं, “अगर सेंसर बोर्ड ने ‘चोली के पीछे’ को रोक दिया होता, तो शायद आज हालात कुछ अलग होते। मुझे समझ नहीं आता कि उस वक्त सेंसर बोर्ड ने इसे कैसे पास कर दिया।”
सेंसर बोर्ड पर सवाल
अंजान का मानना है कि ज़िम्मेदारी सिर्फ गीतकारों की नहीं है। उन्होंने सवाल उठाया, “जब एक बड़ा गीतकार ऐसा गाना लिखता है और सेंसर बोर्ड उसे पास कर देता है, तो दूसरे लोग भी वही रास्ता अपनाते हैं।” उनके मुताबिक, उस दौर में ऐसे गानों को लेकर कोई सख़्त गाइडलाइन्स नहीं थीं।
समय के साथ बदलती संवेदनशीलता
आज के दौर में जहाँ सोशल मीडिया पर हर चीज़ की पड़ताल होती है, पुराने गानों पर नए सिरे से बहस शुरू हो गई है। संदीप रेड्डी वंगा जैसे फिल्मकार अमीर खान पर ‘खम्बे जैसी खड़ी है’ जैसे गानों में महिलाओं को ऑब्जेक्टिफाई करने का आरोप लगा चुके हैं।
लेकिन समीर इस पर एक दिलचस्प बात कहते हैं, “उस ज़माने में ये गाने लोगों को पसंद आते थे। आज के समय में शायद वही चीज़ें अलग नज़र आती हैं।” शायद यह समय के साथ बदलती सामाजिक संवेदनशीलता का मामला है।
क्या सिर्फ़ गीतकार ही ज़िम्मेदार?
अंजान इस बात पर ज़ोर देते हैं कि गाने फिल्मों का हिस्सा होते हैं। “गीतकार अकेला नहीं लिखता। संगीतकार, निर्देशक, यहाँ तक कि अभिनेता-अभिनेत्रियाँ भी इसमें शामिल होते हैं। फिर सिर्फ गीतकार को ही क्यों टारगेट किया जाता है?” वो पूछते हैं।
हो सकता है कि यह बहस लंबे समय तक चले। लेकिन एक बात साफ़ है – भारतीय सिनेमा के इतिहास में गानों की भूमिका पर नए सिरे से विचार हो रहा है। और शायद यह ज़रूरी भी है।