मंगलवार को भारतीय रुपये की शुरुआत लगभग सपाट रही, लेकिन विदेशी मुद्रा विश्लेषकों का मानना है कि फिलहाल रुपये की दिशा सकारात्मक रुख बनाए रखेगी। अमेरिकी डॉलर में जारी कमजोरी और वैश्विक स्तर पर अमेरिकी आर्थिक नीतियों को लेकर बनी अनिश्चितता ने रुपये को थोड़ा समर्थन प्रदान किया है।
सप्ताह की शुरुआत में रुपया 84.79 के स्तर तक पहुंच गया था, जो दो सप्ताह का उच्चतम स्तर है। हालांकि बाद में कुछ गिरावट आई, जब सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों और तेल कंपनियों ने डॉलर की बड़ी मांग दिखाई।
डॉलर कमजोर, लेकिन क्यों?
डॉलर इंडेक्स फिलहाल 99 के नीचे ट्रेड कर रहा है और साल 2025 में अब तक यह करीब 9% गिर चुका है। इसकी वजह अमेरिकी ट्रेड और फिस्कल पॉलिसीज़ को लेकर बढ़ती चिंता है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दरों में संभावित कटौती और चीन जैसे देशों की तरफ से युआन को वैश्विक रूप देने की कोशिशों ने डॉलर की स्थिति को और कमजोर किया है।
यूरो भी इस साल अब तक 10% तक मज़बूत हो चुका है। यूरोपीय सेंट्रल बैंक की अध्यक्ष क्रिस्टीन लगार्ड ने हाल ही में बयान दिया कि “डॉलर के सामने अब वैश्विक मुद्रा का नया क्षण तैयार हो रहा है,” जो दर्शाता है कि वैश्विक परिदृश्य बदल रहा है।
भारतीय बाजार पर असर
HDFC सिक्योरिटीज के विदेशी मुद्रा विश्लेषक दिलिप परमार का कहना है कि निकट भविष्य में रुपया 84.60 से 85.30 के दायरे में घूम सकता है। उन्होंने यह भी जोड़ा कि डॉलर/INR में कोई भी बढ़ोतरी ‘सेल ऑन राइज़’ की स्थिति में रहेगी, यानी जैसे ही डॉलर महंगा होगा, बाजार में बिकवाली शुरू हो जाएगी।
मुंबई स्थित एक बैंक के विदेशी मुद्रा ट्रेडर के अनुसार:
“तेल कंपनियों की ओर से डॉलर की मांग बनी रहेगी, लेकिन बाजार में डॉलर के किसी भी उछाल पर बिकवाली आने की संभावना है।”
महत्वपूर्ण आंकड़े (Key Indicators)
- 1-महीने का नॉन-डिलिवरेबल फॉरवर्ड: 85.07–85.10 रेंज
- ऑनशोर एक-महीने का फॉरवर्ड प्रीमियम: 15 पैसे
- डॉलर इंडेक्स: 98.83 (0.1% नीचे)
- ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स: $64.5 प्रति बैरल (0.3% गिरावट)
- 10 साल की अमेरिकी बॉन्ड यील्ड: 4.49%
- विदेशी निवेश (NSDL डेटा):
- ₹69.3 मिलियन की इक्विटी खरीद (23 मई)
- ₹158.6 मिलियन के बॉन्ड्स की बिक्री
एफपीआई गतिविधि पर नजर
हाल के हफ्तों में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का व्यवहार मिश्रित रहा है। एक ओर जहां इक्विटी में खरीदारी जारी है, वहीं बॉन्ड मार्केट में बेचवाली देखने को मिली है। यह स्पष्ट करता है कि निवेशक अभी सतर्क हैं और वे जोखिम से बचने के लिए अपनी पूंजी को पुनर्संरचित कर रहे हैं।
चीन की भूमिका और अमेरिकी दबाव
DBS बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने मई में अपनी मुद्रा युआन को अधिक वैश्विक भूमिका दिलाने के लिए “नियंत्रित लेकिन लक्षित रणनीति” अपनाई है। इसके चलते डॉलर की स्थिति और डगमगाती दिख रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमेरिका में आर्थिक सुधार की उम्मीदें कमजोर पड़ती हैं, तो डॉलर इंडेक्स में और गिरावट संभव है — और इससे रुपये को और मजबूती मिल सकती है।
निष्कर्ष: रुपये का रुख फिलहाल स्थिर, लेकिन वैश्विक कारकों से सतर्क रहना जरूरी
रुपये ने डॉलर के मुकाबले हाल ही में स्थिरता दिखाई है और अमेरिकी नीतियों में कमजोर संकेतों ने इसमें थोड़ी मजबूती भी जोड़ी है। हालांकि तेल कंपनियों की डॉलर मांग और वैश्विक अनिश्चितताओं के कारण स्थिति कभी भी बदल सकती है।
निवेशकों और कारोबारियों के लिए यह समय सतर्कता और रणनीति से फैसले लेने का है। विदेशी मुद्रा बाजार की चाल अब सिर्फ स्थानीय नहीं, बल्कि पूरी तरह ग्लोबल घटनाओं से जुड़ी हुई है।