नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 3’ ठुकराना साबित करता है कि सलमान खान को ‘टाइगर 3’ नहीं करनी चाहिए थी!
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने हाल ही में खुलकर कहा कि वो ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 3’ में नज़र नहीं आएंगे। इस फैसले ने एक बड़ा मैसेज दिया है – हर फिल्म को सीक्वल या फ्रेंचाइज़ी में खींचना ज़रूरी नहीं। चलिए, इसपर एक नज़र डालते हैं।
नवाज़ का बड़ा फैसला: क्यों छोड़ा ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 3’?
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी, जो इस समय अपनी आने वाली फिल्म ‘कॉस्टाओ’ के प्रमोशन में बिज़ी हैं, ने हाल ही में ‘मिड डे’ को दिए इंटरव्यू में साफ कहा कि ना तो अनुराग कश्यप ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 3’ बनाएंगे और ना ही वो उसमें काम करेंगे।
नवाज़ ने कहा, “मुझे बहुत सारे ऑफर्स आते हैं कि फैज़ल खान का करैक्टर लेकर एक नई फिल्म बनाते हैं, लेकिन मैं इसके लिए तैयार नहीं हूं।”
उनके इस बयान ने इंडस्ट्री में चल रहे फ्रेंचाइज़ी कल्चर पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
फ्रेंचाइज़ी फिल्मों का असली सच
आजकल हर हिट फिल्म को जबरदस्ती सीक्वल या यूनिवर्स में बदलने का ट्रेंड बन गया है। पर सच्चाई ये है कि हर कहानी को आगे बढ़ाने की ज़रूरत नहीं होती।
सलमान खान की ‘टाइगर’ फ्रेंचाइज़ी को ही देख लीजिए। ‘एक था टाइगर’ (2012) में जो जादू था, वो ‘टाइगर जिंदा है’ और फिर ‘टाइगर 3’ में कहीं खो सा गया। खासकर ‘टाइगर 3’ में तो कहानी में दम ही नहीं था, सिर्फ नाम और स्टार पावर के भरोसे फिल्म चली।
सलमान का डायलॉग “जब तक टाइगर मरा नहीं, तब तक टाइगर हारा नहीं” सुनकर भी वो इमोशनल कनेक्ट नहीं बन पाया, जो पहले हुआ करता था।
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ को वहीं रहने देना सही फैसला
‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों का जादू उनके ऑरिजिनलपन में है। फैज़ल खान का करैक्टर आइकॉनिक बन चुका है और उसे बार-बार रीकैप करना शायद उसकी खासियत को कम कर दे।
नवाज़ुद्दीन का ये फैसला कि “कुछ कहानियां वहीं पूरी हो जानी चाहिए जहां उनकी जगह है,” बहुत सही है। फालतू में उनकी लंबाई बढ़ाने से सिर्फ फ्रेंचाइज़ी का नाम चलता है, कहानी की आत्मा खो जाती है।
‘सिंघम अगेन’ और ‘भूल भुलैया 3’ भी बनीं उदाहरण
सिर्फ ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ ही नहीं, ‘सिंघम अगेन’ और ‘भूल भुलैया 3’ जैसी कई फिल्मों के साथ भी यही हो रहा है। अगर कंटेंट नया और दमदार ना हो, तो पुराने हिट फॉर्मूले दोहराने से काम नहीं चलता।
फ्रेंचाइज़ी फिल्मों को बनाने से पहले यह सोचना चाहिए कि क्या हमारे पास कहने को कुछ नया है? अगर नहीं, तो बेहतर है नई कहानियों पर काम किया जाए।
नवाज़ुद्दीन का सम्मान बढ़ा दिया इस फैसले ने
आज जब हर कोई जल्दी से जल्दी ब्रांड वैल्यू और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन के पीछे भाग रहा है, नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का यह फैसला उनके एक्टिंग के प्रति प्यार और ईमानदारी को दिखाता है।
उनकी यह सोच बॉलीवुड को एक बहुत ज़रूरी सीख देती है – “कभी-कभी सबसे बड़ा सक्सेस वही होता है जब आप ना कहने की हिम्मत रखते हैं।”