ड्यूक्स बॉल पर बहस: क्या खो रहा है पुराना जादू?
इंग्लैंड और भारत के बीच चल रही टेस्ट सीरीज में एक मुद्दा लगातार सुर्खियों में है – ड्यूक्स बॉल। कभी यह गेंद गेंदबाजों की पहली पसंद हुआ करती थी। ऑस्ट्रेलिया में इस्तेमाल होने वाली कुकाबुरा या भारत की SG गेंदों के मुकाबले ड्यूक्स बॉल का सीम लंबे समय तक टिका रहता था, जिससे गेंदबाजों को लंबे समय तक स्विंग और सीम मूवमेंट मिल पाता था। लेकिन अब शायद वह दिन बीत गए लगते हैं।
बदलाव की शुरुआत कब हुई?
पिछले कुछ सालों से ड्यूक्स बॉल का व्यवहार बदला है। गेंद पहले की तरह लंबे समय तक स्विंग नहीं कर रही। और सबसे बड़ी समस्या यह है कि गेंदें जल्दी खराब होने लगी हैं, आकार बिगड़ने लगा है। इस वजह से अंपायरों को बार-बार गेंद बदलनी पड़ रही है। एडगबैस्टन टेस्ट के बाद शुभमन गिल ने इस मुद्दे को उठाया था। लेकिन लॉर्ड्स टेस्ट में हालात और खराब हुए।
लॉर्ड्स टेस्ट में क्या हुआ?
मैच के दौरान गेंद को लेकर कई बार विवाद हुआ। अंपायरों को कम से कम तीन-चार बार गेंद की जांच करनी पड़ी। कई बार तो गेंद बदलनी भी पड़ी। मुमकिन है कि गेंद के निर्माण प्रक्रिया में कोई बदलाव आया हो, या फिर मौसम की वजह से ऐसा हो रहा हो। लेकिन सच यह है कि ड्यूक्स बॉल अब वह नहीं रही जो पहले हुआ करती थी।
गेंदबाजों पर क्या असर पड़ रहा है?
इसका सीधा असर गेंदबाजों पर दिख रहा है। जब गेंद जल्दी खराब हो जाती है, तो वह न तो ठीक से स्विंग करती है, न ही सीम मूवमेंट दे पाती है। और तो और, गेंद का आकार बिगड़ने से बल्लेबाजों को भी दिक्कत होती है। कहा जा सकता है कि यह समस्या टेस्ट क्रिकेट की मूल भावना के खिलाफ जाती है, जहां गेंद और बल्ले के बीच संतुलन जरूरी होता है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
कुछ क्रिकेट विश्लेषकों का मानना है कि गेंद निर्माता कंपनी ने शायद कुछ बदलाव किए हैं। वहीं दूसरी तरफ, कुछ लोग इंग्लैंड के मौसम को जिम्मेदार ठहराते हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि इस साल की गेंदों में समस्या ज्यादा नजर आ रही है। अगर यही हाल रहा, तो आने वाले मैचों में भी यह मुद्दा बना रह सकता है।
आगे क्या हो सकता है?
अब सवाल यह है कि क्या इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) और गेंद निर्माता ड्यूक्स कंपनी इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे? क्या गेंद की गुणवत्ता पर फिर से ध्यान दिया जाएगा? हो सकता है कि अगले टेस्ट से पहले गेंद की गुणवत्ता पर सख्त निरीक्षण हो या भविष्य में अलग-अलग बैच की गेंदों की टेस्टिंग की जाए।
एक विकल्प यह भी हो सकता है कि मैच रेफरी और अंपायरों को गेंद बदलने के अधिकारों के साथ साथ गेंद की गुणवत्ता रिपोर्ट भी देना अनिवार्य किया जाए। यदि समस्या बनी रही, तो ICC को भी हस्तक्षेप करना पड़ सकता है।
निष्कर्ष:
ड्यूक्स बॉल एक समय टेस्ट क्रिकेट की शान मानी जाती थी। उसका सीम और स्विंग गेंदबाजों के लिए सबसे बड़ा हथियार होता था। लेकिन अब यह हथियार कुंद होता नजर आ रहा है। गेंद की गुणवत्ता पर उठते सवालों का जवाब देना ज़रूरी हो गया है, नहीं तो आने वाले वर्षों में ड्यूक्स बॉल अपना स्थान गंवा सकती है।