दिल्ली सरकार ने पुराने वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध की समीक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मांगी पुराने वाहनों पर पूर्ण प्रतिबंध की समीक्षा
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल वाहनों और 10 साल से अधिक पुराने डीजल वाहनों पर लगे पूर्ण प्रतिबंध की समीक्षा की मांग की है। 25 जुलाई को दायर इस आवेदन में रेखा गुप्ता सरकार ने तर्क दिया है कि वाहनों की रोड-वर्थनेस एक तकनीकी और वैज्ञानिक मामला है, जिसे वाहनों की उम्र के बजाय उनके वास्तविक उत्सर्जन स्तर से जोड़कर देखा जाना चाहिए।
क्या कहा याचिका में?
सरकार का कहना है कि मोटर वाहन अधिनियम और केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के तहत वाहनों के उत्सर्जन को मापने के लिए पहले से ही तंत्र मौजूद हैं। ऐसे में सिर्फ उम्र के आधार पर प्रतिबंध लगाना तार्किक नहीं लगता। याचिका में कहा गया है, “पिछले सात सालों में इस प्रतिबंध ने दिल्ली के नागरिकों को कई व्यावहारिक कठिनाइयों का सामना कराया है। अब तकनीक और निगरानी में हुए सुधारों को देखते हुए लगता है कि यह प्रतिबंध शायद उतना प्रासंगिक नहीं रह गया है।”
वैज्ञानिक अध्ययन की जरूरत
दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र या वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) को निर्देश देने की मांग की है कि वह 29 अक्टूबर 2018 के आदेश पर एक व्यापक वैज्ञानिक अध्ययन करे। सरकार का मानना है कि पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (पीयूसी) तकनीक में सुधार, उत्सर्जन मानकों की सख्त निगरानी और भारत स्टेज VI इंजनों के आने के बाद से स्थिति काफी बदल गई है।
क्या हो विकल्प?
याचिका में एक संतुलित और तकनीक-आधारित दृष्टिकोण अपनाने की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है कि उम्र के आधार पर प्रतिबंध लगाने के बजाय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखा जाना चाहिए:
– वाहन का वास्तविक उत्सर्जन स्तर
– वाहन का माइलेज
– नियमित फिटनेस टेस्ट
– सीएनजी या इलेक्ट्रिक कन्वर्जन जैसे विकल्प
2018 के बाद क्या बदला?
दिल्ली सरकार ने बताया कि 2018 में यह प्रतिबंध एक आपातकालीन उपाय के तौर पर लगाया गया था, जब भारत स्टेज IV (बीएस-IV) उत्सर्जन मानक लागू थे। लेकिन अब बीएस-VI मानक आ चुके हैं, जो कहीं ज्यादा सख्त हैं। सरकार का कहना है कि तकनीकी, कानूनी और पर्यावरणीय बदलावों को देखते हुए इस मामले पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
सिर्फ वाहन ही नहीं, और भी हैं प्रदूषण के स्रोत
याचिका में एक महत्वपूर्ण बात यह भी कही गई है कि दिल्ली-एनसीआर में वाहनों के अलावा भी प्रदूषण के कई स्रोत हैं। पराली जलाना, बायोमास जलाना, निर्माण धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और मौसमी परिस्थितियां भी वायु प्रदूषण में बड़ा योगदान देती हैं। सीएक्यूएम के आंकड़ों के मुताबिक, अलग-अलग मौसम में इन स्रोतों का योगदान अलग-अलग होता है।
क्या हो आगे की राह?
दिल्ली सरकार ने सुझाव दिया है कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एक व्यापक नीति बनाई जानी चाहिए, जिसमें सिर्फ वाहनों पर प्रतिबंध न लगाकर सभी पहलुओं पर विचार किया जाए। सरकार ने कहा है कि चूंकि यह मामला सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे एनसीआर से जुड़ा है, इसलिए केंद्र सरकार या सीएक्यूएम को इस पर वैज्ञानिक अध्ययन करना चाहिए।
तो अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर क्या रुख अपनाता है। एक तरफ पर्यावरण संरक्षण का मुद्दा है, तो दूसरी तरफ आम लोगों की परेशानियां। शायद एक संतुलित समाधान ही सबसे बेहतर विकल्प होगा।