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डीपिका पादुकोण का स्पिरिट से एक्जिट और बॉलीवुड में काम के घंटों पर बहस

डीपिका पादुकोण का ‘स्पिरिट’ से बाहर आना और बॉलीवुड की कामकाजी परिस्थितियों पर बहस

डीपिका पादुकोण के संदीप रेड्डी वंगा की फिल्म ‘स्पिरिट’ से बाहर आने की खबर ने हिंदी फिल्म उद्योग में एक नई बहस छेड़ दी है। मुद्दा था उनकी आठ घंटे के कार्यदिवस की मांग, जिस पर अभी भी राय बंटी हुई है। कुछ लोग डीपिका के पक्ष में हैं तो कुछ का मानना है कि यह मामला इतना सरल नहीं है। लेकिन इस विवाद ने फिल्म इंडस्ट्री में काम के घंटों और स्थितियों पर जरूरी सवाल उठा दिए हैं। अब अभिनेता राम कपूर ने भी इस बहस में अपनी आवाज़ डाली है।

राम कपूर का नज़रिया: ‘सफलता मिलने के बाद ही मिलती है छूट’

राम कपूर ने फर्स्टपोस्ट से बातचीत में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा, “जब आप शोबिज़ में सफल हो जाते हैं, चाहे स्टार के तौर पर या अभिनेता के रूप में, और लोग आपके साथ काम करना चाहते हैं, तभी आपके पास यह अधिकार होता है कि आप कितने घंटे काम करेंगे।”

उन्होंने आगे कहा, “मैं खुद कई सालों से इस स्थिति में हूँ। टीवी करते वक्त भी मैं तय करता था कि मुझे कितने घंटे काम करना है। शायद मैं भाग्यशाली रहा। लेकिन जो भी इस स्तर पर पहुँच जाता है जहाँ उसे काम ढूँढने की ज़रूरत नहीं पड़ती, वह अपने काम के घंटे तय कर सकता है।”

लेकिन यह सच्चाई सभी पर लागू नहीं होती

राम कपूर ने साफ किया कि यह सुविधा हर किसी को नहीं मिलती। उनके मुताबिक, “हममें से ज़्यादातर अभिनेता, खुद मैं भी और मेरे कई साथी, जानते हैं कि जब हम कोई प्रोजेक्ट साइन करते हैं, तो हमें उसे पूरी ईमानदारी से करना होता है। क्योंकि यही इस काम की असली प्रकृति है।”

उनकी बात से साफ झलकता है कि बॉलीवुड में काम के घंटों को लेकर एक बड़ा अंतर है। स्टार्स के पास शायद विकल्प होते हैं, लेकिन बाकी लोगों के लिए यह आसान नहीं।

क्या वाकई संभव है आठ घंटे का शिफ्ट?

फिल्म सेट्स पर काम करने वाले लोग बताते हैं कि 12-14 घंटे की शूटिंग आम बात है। कभी-कभी तो यह 18 घंटे तक भी पहुँच जाती है। ऐसे में डीपिका की मांग को लेकर दो तरह के विचार सामने आ रहे हैं।

एक तरफ वे लोग हैं जो मानते हैं कि लंबे शिफ्ट्स से क्रिएटिविटी और सेहत दोनों पर असर पड़ता है। वहीं दूसरी ओर कुछ का कहना है कि फिल्म निर्माण की प्रक्रिया ही ऐसी है कि इसे एक निश्चित समय में बाँध पाना मुश्किल है।

इंडस्ट्री में बदलाव की गुंजाइश?

यह पहली बार नहीं है जब बॉलीवुड में कामकाजी परिस्थितियों पर सवाल उठे हैं। पिछले कुछ सालों में कई अभिनेताओं ने मानसिक स्वास्थ्य और थकान के बारे में खुलकर बात की है। शायद डीपिका का यह कदम इस दिशा में एक बड़ी बहस को जन्म दे।

लेकिन सवाल यह भी है कि क्या पूरी इंडस्ट्री के लिए एक स्टैंडर्ड वर्किंग आवर तय किया जा सकता है? या फिर यह केवल कुछ बड़े सितारों तक ही सीमित रहेगा?

आगे की राह क्या हो सकती है?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में एक संतुलित दृष्टिकोण की जरूरत है। हो सकता है कि फिल्म निर्माण के तरीकों में कुछ लचीलापन लाने की आवश्यकता हो। शायद कुछ दिन लंबे शिफ्ट्स के लिए और कुछ दिन छोटे।

एक बात तो साफ है – यह बहस अब जल्द खत्म होने वाली नहीं। और जैसे-जैसे और लोग इस पर अपनी राय देंगे, उम्मीद है कि कोई ठोस समाधान भी सामने आएगा। फिलहाल तो यह विषय सभी की जुबान पर है।

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।