# श्वेता तिवारी ने बताया कैसे पालक को बनाया अनुशासित
अकेले ही संभाली बेटी की परवरिश
श्वेता तिवारी का नाम 2000 के दशक की शुरुआत में ‘कसौटी जिंदगी के’ के जरिए घर-घर पहुँचा। लेकिन उनकी असल चुनौती थी बेटी पालक तिवारी को अकेले पालना। एक ताज़ा इंटरव्यू में श्वेता ने खुलकर बताया कि कैसे उन्होंने पालक को अनुशासन में रखा।
उन्होंने कहा, “मैं सख़्त नहीं थी, लेकिन घर में कुछ नियम ज़रूर थे।” शायद यही वजह है कि पालक आज भी माँ की बनाई हुई सीख को महत्व देती है।
पॉकेट मनी से सिखाया ज़िम्मेदारी का पाठ
श्वेता ने बताया कि पालक को हमेशा एक तय रकम ही खर्च के लिए दी जाती थी। अगर वह इससे ज़्यादा खर्च करती, तो उसे घर के काम करने पड़ते थे। मसलन, अतिरिक्त पैसों की भरपाई के लिए उसे बर्तन धोने या कपड़े तह करने जैसे काम करने होते थे।
“यह सिर्फ़ पैसों की बात नहीं थी,” श्वेता ने कहा, “बल्कि मैं चाहती थी कि वह समझे कि हर चीज़ की कीमत होती है।” और शायद यही वजह है कि पालक आज भी फिजूलखर्ची से बचती है।
कर्फ्यू का सख़्त नियम
पार्टी या दोस्तों के साथ बाहर जाने पर पालक के लिए एक सख़्त नियम था – अगर वह कहती कि वह 1 बजे तक घर आ जाएगी, तो उसे दरवाज़े पर 1 बजे खड़ा होना होता था। “1 बजे का मतलब था घर आना, पार्टी से निकलना नहीं,” श्वेता ने हँसते हुए बताया।
लेकिन यहीं बात ख़त्म नहीं होती। श्वेता पालक के साथ जाने वाले हर दोस्त और उनकी माँ का नंबर भी रखती थीं। “मैं कहती थी कि मैं उनकी माँ को फोन नहीं करूँगी, लेकिन अगर तुम्हारा फोन स्विच ऑफ मिला, तो मैं तुम्हारे साथियों को फोन करूँगी। अगर वे भी नहीं मिले, तो मैं उनकी माँओं को फोन कर दूँगी,” उन्होंने कहा।
फोन ट्रैकिंग भी थी एक हिस्सा
श्वेता मानती हैं कि वह पालक के फोन को ट्रैक भी करती थीं। “पालक जानती थी कि अगर मैं कुछ कह रही हूँ, तो उसे करके भी दिखाऊँगी,” उन्होंने कहा। मुमकिन है कि आज के दौर में यह बात थोड़ी अजीब लगे, लेकिन श्वेता के लिए यह बेटी की सुरक्षा सुनिश्चित करने का तरीका था।
माँ-बेटी का रिश्ता है खास
इन सबके बावजूद, श्वेता और पालक का रिश्ता बेहद करीबी है। पालक अक्सर सोशल मीडिया पर माँ के साथ अपनी तस्वीरें शेयर करती है। और श्वेता भी बेटी के करियर को लेकर हमेशा सपोर्टिव रही हैं।
तो क्या यह सब सख़्त नियम ज़रूरी थे? श्वेता का मानना है कि हाँ। “अगर आप बच्चों को बिना सीमाओं के छोड़ देंगे, तो वे गलत रास्ते पर जा सकते हैं,” उन्होंने कहा।
आज भी कायम हैं वही सबक
पालक अब बड़ी हो चुकी हैं और अपने करियर में व्यस्त हैं। लेकिन श्वेता की सिखाई हुई बातें आज भी उनके साथ हैं। फिर चाहे वह पैसों की बचत हो या समय की पाबंदी, पालक ने माँ से जो सीखा, उसे जीवन में उतारा है।
श्वेता की यह कहानी शायद उन माता-पिता के लिए एक सबक है जो बच्चों की परवरिश को लेकर चिंतित रहते हैं। कभी-कभी थोड़ी सख़्ती भी प्यार का ही एक रूप होती है।