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NATO चीफ की चेतावनी: रूस से व्यापार जारी रखने पर भारत, चीन और ब्राजील पर गंभीर प्रतिबंधों का खतरा

नाटो प्रमुख का चेतावनी भरा बयान: रूस के साथ कारोबार करने वाले देशों पर गंभीर प्रतिबंध

नाटो के महासचिव मार्क रुट्टे ने बुधवार को कहा कि अगर भारत, चीन और ब्राज़ील जैसे देश रूस के साथ व्यापार जारी रखते हैं, तो उन पर माध्यमिक प्रतिबंधों (सेकेंडरी सैंक्शंस) का गंभीर असर हो सकता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब भारत और अमेरिका 1 अगस्त से पहले एक व्यापार समझौते पर काम कर रहे हैं।

वाशिंगटन में पत्रकारों से बात करते हुए रुट्टे ने कहा, “अगर आप दिल्ली, बीजिंग या ब्राज़ील में हैं, तो शायद आपको इस पर गौर करना चाहिए। यह आपको बुरी तरह प्रभावित कर सकता है।” उन्होंने कहा कि इन देशों को रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को फ़ोन करके शांति वार्ता के लिए गंभीरता दिखाने को कहना चाहिए।

अमेरिकी टैरिफ़ की आशंका और भारत की चिंताएं

यह बयान उस समय आया है जब अमेरिका ने रूस के साथ व्यापार जारी रखने वाले देशों पर 500% तक के टैरिफ़ लगाने का प्रस्ताव रखा है। हाल ही में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी 100% की दर से ‘कड़े’ टैरिफ़ की धमकी दी थी, अगर 50 दिनों के भीतर रूस-यूक्रेन युद्ध ख़त्म नहीं हुआ।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह रूस पर दबाव बनाने की एक रणनीति है। भारत अब तक रूस से तेल आयात कम करने को तैयार नहीं दिखा है। भारत का कहना है कि वह उसी से तेल ख़रीदेगा जो सबसे अच्छी कीमत देगा, बशर्ते वह तेल प्रतिबंधों के दायरे में न हो।

भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रूसी तेल पर निर्भरता

भारत अपनी कच्चे तेल की ज़रूरत का लगभग 88% आयात से पूरा करता है। पिछले तीन सालों से रूस भारत के तेल आयात का मुख्य स्रोत बना हुआ है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों ने रूसी तेल से दूरी बना ली, जिसके बाद रूस ने भारत जैसे देशों को रियायती दरों पर तेल देना शुरू किया।

नतीजा यह हुआ कि रूस, जो कभी भारत के लिए मामूली तेल आपूर्तिकर्ता था, अब सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। पारंपरिक पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ताओं को पीछे छोड़ते हुए रूस ने भारत के तेल बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत कर ली है।

जून में रूसी तेल आयात में उछाल

आंकड़े बताते हैं कि जून में भारत ने रूस से 11 महीने के उच्चतम स्तर पर तेल आयात किया। वैश्विक कमोडिटी बाज़ार विश्लेषण फर्म कप्लर के अनुसार, जून में भारत के कुल तेल आयात में रूसी तेल की हिस्सेदारी 43.2% रही। यह इराक़, सऊदी अरब और यूएई जैसे तीन प्रमुख पश्चिम एशियाई आपूर्तिकर्ताओं के संयुक्त आयात से भी अधिक है।

2024-25 के वित्तीय वर्ष में भारत ने रूस से 87.4 मिलियन टन तेल आयात किया, जो कुल आयात का 36% है। यूक्रेन युद्ध से पहले रूस की हिस्सेदारी 2% से भी कम थी।

क्या टैरिफ़ की धमकी असलियत बनेगी?

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि अमेरिका की तरफ़ से की गई टैरिफ़ की धमकी वास्तविक रूप लेगी या नहीं। ट्रंप प्रशासन का व्यापार नीतियों को लेकर रवैया अक्सर अनिश्चित रहा है। भारत के तेल क्षेत्र में उम्मीद की जा रही है कि अमेरिका वास्तव में ऐसे टैरिफ़ लागू नहीं करेगा, क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था के हित में यही है कि तेल बाज़ार में आपूर्ति बनी रहे।

लेकिन अगर अमेरिका ऐसा करता है, तो भारत को रूस से तेल आयात कम करना पड़ सकता है। इससे पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं जैसे इराक़, सऊदी अरब और यूएई से आयात बढ़ाना पड़ेगा, जिससे प्रति बैरल कुछ डॉलर की लागत बढ़ सकती है। साथ ही, इससे भारत और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार समझौते की वार्ता भी प्रभावित हो सकती है।

विशेषज्ञों की राय

कप्लर के लीड रिसर्च एनालिस्ट सुमित रितोलिया का कहना है, “रूसी तेल की कीमतों में छूट, भुगतान तंत्र और वैकल्पिक शिपिंग नेटवर्क की वजह से भारतीय रिफ़ाइनरियों के लिए यह आकर्षक बना हुआ है। पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद रूस से आयात बढ़ा है। अगर कोई बड़ी व्यवधान नहीं आता, तो यह ट्रेंड जारी रह सकता है।”

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।