भारत ने पारा 50 प्रतिशत गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता हासिल कर ली, 2030 का लक्ष्य पांच साल पहले पूरा
भारत ने पार किया जलवायु मील का पत्थर, गैर-जीवाश्म ऊर्जा ने पहली बार 50% हिस्सेदारी हासिल की
30 जून तक के आंकड़े बताते हैं कि भारत की स्थापित बिजली क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी पहली बार 50.1% पर पहुंच गई है। यह लक्ष्य वास्तव में 2030 के लिए तय किया गया था, लेकिन देश ने इसे पांच साल पहले ही हासिल कर लिया। 2015 में जब पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे, तब भारत ने 2030 तक 40% गैर-जीवाश्म क्षमता का लक्ष्य रखा था। 2022 में इस लक्ष्य को बढ़ाकर 50% कर दिया गया था।
सौर और पवन ऊर्जा ने बदली तस्वीर
नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के अनुसार, जून 2024 तक देश की कुल स्थापित क्षमता 485 गीगावॉट (GW) थी। इसमें अक्षय ऊर्जा – जिसमें सौर, पवन, लघु जलविद्युत और बायोगैस शामिल हैं – की हिस्सेदारी 185 GW है। बड़ी जलविद्युत परियोजनाओं ने 49 GW और परमाणु ऊर्जा ने 9 GW का योगदान दिया। वहीं, कोयला और गैस आधारित तापीय ऊर्जा की हिस्सेदारी अब 242 GW यानी 49.9% रह गई है। 2015 में तापीय ऊर्जा का हिस्सा 70% था।
लेकिन यहां एक अहम बात समझनी होगी। स्थापित क्षमता में गैर-जीवाश्म स्रोतों की हिस्सेदारी बढ़ने का मतलब यह नहीं कि देश की बिजली आपूर्ति में उनका योगदान भी 50% हो गया है। असल में, सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्रोतों की प्रकृति अस्थिर होती है, इसलिए तापीय संयंत्र अभी भी देश की 70% से अधिक बिजली पैदा करते हैं।
ग्रिड स्थिरता बनी बड़ी चुनौती
अप्रैल 2020 से जून 2025 के बीच भारत ने 95 GW सौर और पवन क्षमता जोड़ी है। लेकिन बैटरी सिस्टम और पंप्ड हाइड्रो जैसी भंडारण क्षमता के बिना, इस तेजी से बढ़ती अंतरायनशील ऊर्जा ने ग्रिड स्थिरता को चुनौती दी है। 30 मई 2024 को जब देश में बिजली की मांग 250 GW पर पहुंच गई, तो ग्रिड प्रबंधकों को इसे पूरा करने में दिक्कत हुई। वहीं मई में अनियमित बारिश के कारण सौर ऊर्जा की कीमतें कुछ समय के लिए शून्य तक पहुंच गईं।
शायद यही वजह है कि भंडारण क्षमता पर अब ज्यादा जोर दिया जा रहा है। भंडारण से सौर और पवन संयंत्रों द्वारा उत्पादित अतिरिक्त बिजली को स्टोर किया जा सकता है और जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन 2024 के अंत तक भारत की कुल भंडारण क्षमता 5 GW से भी कम थी – जिसमें 4.75 GW पंप्ड स्टोरेज और 110 मेगावॉट (MW) बैटरी स्टोरेज शामिल हैं।
सरकार के प्रयास, पर प्रगति धीमी
हाल के महीनों में सरकार ने भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए कई नीतिगत कदम उठाए हैं। फरवरी में केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) ने भविष्य की निविदाओं में सौर परियोजनाओं के साथ ऊर्जा भंडारण प्रणालियों को सह-स्थापित करने की सलाह दी। बैटरी भंडारण के लिए वायबिलिटी गैप फंडिंग (VGF) योजना को भी बढ़ाया गया है।
लेकिन जमीनी स्तर पर प्रगति अभी धीमी है। बैटरी भंडारण परियोजनाओं का क्रियान्वयन “अपेक्षा से धीमा” बना हुआ है। उच्च प्रारंभिक लागत, आयात शुल्क और घरेलू सामग्री आवश्यकताओं का अनुपालन न होना प्रमुख बाधाएं हैं। वहीं पंप्ड हाइड्रो परियोजनाओं को मंजूरी मिलने की प्रक्रिया भी धीमी चल रही है।
छत पर सौर और ग्रिड स्थिरता पर जोर
30 जून को सौर और पवन परियोजनाओं के लिए अंतरराज्यीय संचरण प्रणाली (ISTS) छूट समाप्त हो गई है। साथ ही MNRE ने छत पर सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने पर जोर दिया है। ये दोनों कदम ग्रिड स्थिरता में सुधार कर सकते हैं।
ISTS छूट के तहत डेवलपर्स गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में परियोजनाएं बना सकते थे और पूरे देश में बिजली पहुंचा सकते थे। लेकिन इससे कुछ राज्यों में परियोजनाओं का जमावड़ा हो गया और उच्च मांग के समय ग्रिड में भीड़ की स्थिति पैदा हो गई। अब संचरण शुल्क फिर से लागू होने से डेवलपर्स मांग केंद्रों के करीब परियोजनाएं बनाने को प्रोत्साहित होंगे।
वहीं ‘प्रधानमंत्री सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना’ के तहत 27 GW छत पर सौर क्षमता जोड़ने का लक्ष्य है। यह विकेंद्रीकृत उत्पादन को बढ़ावा देकर ग्रिड को स्थिर करने में मदद कर सकता है।