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भारत-अमेरिका व्यापार समझौता: नया अगस्त 1 की समयसीमा, ट्रम्प की अनिश्चित टैरिफ नीति और वैश्विक प्रभाव

ट्रंप प्रशासन का व्यापार समझौता लक्ष्य: क्या अगस्त तक भी हो पाएगा समाधान?

डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा तय किए गए 90 दिनों की “पारस्परिक टैरिफ” समयसीमा बीत जाने के बाद तीन बातें साफ हो गई हैं। पहली, भारत के साथ व्यापार समझौते में अभी समय लग सकता है—शायद यह अब नई 1 अगस्त की समयसीमा तक टल जाए। दूसरी, चूंकि व्यापार समझौते अक्सर जटिल दस्तावेज होते हैं और इन्हें अंतिम रूप देने में सालों लग जाते हैं, इसलिए समयसीमा बढ़ना भारत और अन्य देशों के लिए अच्छी खबर हो सकती है। तीसरी, वॉल स्ट्रीट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप ने अपने सलाहकारों की सलाह पर पारस्परिक टैरिफ लागू करने की तारीख 1 अगस्त तक बढ़ा दी है।

क्या अगस्त की डेडलाइन भी ढीली होगी?

लेकिन यह नई तारीख भी पक्की नहीं लगती। मंगलवार को कैबिनेट ब्रीफिंग के दौरान ट्रंप ने एक सवाल के जवाब में इशारा दिया कि 1 अगस्त की समयसीमा भी “100% तय नहीं है”। यह ट्रंप के पुराने रिकॉर्ड से मेल खाता है। क्या वाकई में कोई ठोस डेडलाइन है, जैसा कि रॉयटर्स ने सुझाया था, या फिर यह सिर्फ एक नेगोशिएशन टैक्टिक है जिससे देशों को दबाव में रखा जा सके? हो सकता है कि ऐसा ही हो। ट्रंप की टैरिफ नीति जैज़ संगीत की तरह है—बजाते समय ही सुर तय होते हैं! और दस दिनों से भी कम समय में बदलती नीतियों के बीच एक ही चीज़ पक्की लगती है: अनिश्चितता।

’90 दिनों में 90 समझौते’ का सपना धरा रह गया

अप्रैल में ट्रंप के ट्रेड एडवाइज़र पीटर नवारो ने दावा किया था कि प्रशासन “90 दिनों में 90 समझौते” करेगा। बाद में ट्रेजरी सेक्रेटरी स्कॉट बेसेंट और कॉमर्स सेक्रेटरी हॉवर्ड लुटनिक ने इस आंकड़े को घटाकर लगभग 12 कर दिया। लेकिन यह भी बहुत ज्यादा है। अब तक ट्रंप सिर्फ तीन देशों—ब्रिटेन, चीन और वियतनाम—के साथ समझौते कर पाए हैं। बाकी दो दर्जन देशों को तो सिर्फ धमकी भरे पत्र भेजे गए हैं। यानी लक्ष्य से अभी बहुत पीछे हैं।

इन पत्रों को प्राप्त करने वालों में जापान और दक्षिण कोरिया जैसे अमेरिकी सहयोगी शामिल हैं, साथ ही बांग्लादेश, कंबोडिया और लाओस जैसे छोटे विकासशील देश भी। ब्राजील को तो 50% के टैरिफ का सामना करना पड़ सकता है। और ट्रंप की आदत के मुताबिक, ये टैरिफ सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए पत्रों के जरिए घोषित किए गए।

समयसीमा बढ़ने का मतलब: क्या यह अच्छा संकेत है?

90 दिनों की समयसीमा समाप्त होते ही ट्रंप प्रशासन ने मान लिया है कि व्यापार समझौते करने में समय लगता है। चूंकि ऐसे समझौतों को अंतिम रूप देने में सालों लग जाते हैं, इसलिए 1 अगस्त तक की एक्सटेंशन कोई हैरानी वाली बात नहीं है। सोमवार को व्हाइट हाउस के बाहर नवारो ने इस देरी का दोष अन्य देशों पर डालते हुए कहा कि वे “समय बर्बाद कर रहे हैं”। नतीजा यह है कि तीन महीने बाद भी ज्यादातर देश वहीं खड़े हैं जहां से शुरुआत की थी।

क्या ट्रंप के समझौतों पर भरोसा किया जा सकता है?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इस प्रशासन द्वारा किए गए किसी भी समझौते पर भरोसा किया जा सकता है? ब्रिक्स देशों पर अचानक थोपे गए नए टैरिफ, तांबे और दवाओं पर अतिरिक्त शुल्क, या फिर जापान और दक्षिण कोरिया जैसे सहयोगियों पर उच्च कर—ये सभी इस बात का संकेत हैं कि ट्रंप प्रशासन किसी भी समझौते को कभी भी तोड़ सकता है। अमेरिकी व्यापार नीतियों में यह अनिश्चितता वैश्विक आर्थिक स्थिरता के लिए चिंता का विषय बनती जा रही है।

निष्कर्ष

ट्रंप की “अमेरिका फर्स्ट” नीति अब एक नई दिशा ले चुकी है—“टैरिफ फर्स्ट”। इसमें ना कोई स्पष्टता है, ना दीर्घकालिक सोच। भारत और अन्य देशों को इस भ्रमित माहौल में अपनी आर्थिक संप्रभुता और रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखनी होगी।

जहाँ एक ओर अमेरिका वैश्विक व्यापार पर अपना दबदबा बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत को चाहिए कि वह अवसरों और खतरों—दोनों का संतुलित मूल्यांकन करे। चाहे अगस्त 1 की समयसीमा लागू हो या फिर और आगे बढ़ जाए, भारत को अपनी शर्तों पर सौदा करने की तैयारी रखनी होगी।

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।