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भारतीय फैशन उद्योग: टिकाऊपन और तेजी के बीच संतुलन की चुनौती

पिछले कुछ वर्षों में भारत में ब्रांडेड परिधानों की मांग में जबरदस्त इज़ाफा हुआ है। हर साल औसतन 15% की दर से बढ़ रहे इस क्षेत्र के पीछे उपभोक्ताओं की बढ़ती क्रय क्षमता, विदेशी ब्रांड्स का आगमन, और तेजी से बदलती फैशन की लहरें जिम्मेदार हैं। लेकिन इस चमक-दमक के पीछे छिपा है एक गहरा सवाल—क्या यह रफ्तार टिकाऊ है?

फैशन जो टिकता नहीं

आधुनिक उपभोक्ता ज़्यादा कपड़े खरीदता है लेकिन कम समय तक पहनता है। इससे न सिर्फ कचरे की मात्रा बढ़ती है, बल्कि पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पड़ता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की रिपोर्ट बताती है कि फैशन इंडस्ट्री अकेले 10% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। टेक्सटाइल डाइंग और फिनिशिंग, औद्योगिक जल प्रदूषण का पांचवां हिस्सा उत्पन्न करती हैं।

परंपरा से सीखें टिकाऊ जीवनशैली

भारत की पारंपरिक क्राफ्ट इकोनॉमी इस संकट का समाधान दे सकती है। खादी की शर्ट्स, ब्लॉक प्रिंटेड कपड़े, और कंथा सिलाई जैसे शिल्पों में न केवल स्थायित्व है, बल्कि आत्मीयता भी। पुरानी साड़ियों से बने गोधड़ी क्विल्ट्स, लकड़ी के खिलौने, और स्थानीय बुनकरों की मेहनत इस बात का प्रमाण हैं कि कम संसाधनों में भी सुंदरता और टिकाऊपन संभव है।

थ्रिफ्टिंग: नया लेकिन जरूरी ट्रेंड

बड़े शहरों में अब थ्रिफ्टिंग यानी सेकंड-हैंड फैशन का चलन भी बढ़ रहा है। यह सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि पर्यावरणीय दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इंस्टाग्राम आधारित थ्रिफ्ट स्टोर “@ish.museum” की संस्थापक इशा सक्सेना बताती हैं कि लोगों की मानसिकता बदलना अभी भी एक चुनौती है। “सेकंड हैंड कपड़ों को स्टाइलिश, स्वच्छ और टिकाऊ मानना भारत में अब भी एक नई सोच है,” वो कहती हैं।

स्टार्टअप्स दे रहे हैं पुराने को नया जीवन

कुछ स्टार्टअप इस क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रहे हैं।

  • ‘द्विज’ ने 2,000 पुरानी जींस को रीसायकल कर 300 बैग बनाए।
  • ‘डूडलेज’ कपड़े के स्क्रैप से नए परिधान और होम डेकोर आइटम्स बनाता है।
  • ‘काशा’, जो प्लास्टिक कचरे को पुराने कपड़ों से जोड़कर नए उत्पाद बनाता है, एक अनोखा उदाहरण है।

ये उदाहरण सिर्फ नवाचार नहीं, बल्कि जिम्मेदारी की भावना का संकेत हैं।

निष्कर्ष: धीमी गति में है स्थायित्व की शक्ति

फैशन का मतलब सिर्फ ट्रेंड फॉलो करना नहीं, बल्कि एक ऐसा चयन करना है जो पर्यावरण, कारीगर और समाज—तीनों के लिए हितकारी हो। भारत जैसे देश में जहां रिवायतें और नवाचार साथ चलते हैं, वहां फास्ट फैशन के बीच टिकाऊपन की परंपरा को फिर से जीवित करना वक्त की ज़रूरत बन गया है।

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।