भारत की ऊर्जा रणनीति का नया अध्याय
भारत ने इस साल की शुरुआत में अपनी ऊर्जा नीति को एक नई दिशा देते हुए अमेरिका से कच्चे तेल के आयात में 270% की बेतहाशा वृद्धि दर्ज की है। यह न सिर्फ भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है, बल्कि भारत-अमेरिका के संभावित व्यापार समझौते की जमीन भी तैयार करता नजर आ रहा है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
जनवरी से अप्रैल 2025 के बीच भारत ने अमेरिका से 6.31 मिलियन टन कच्चा तेल आयात किया, जबकि पिछले साल की इसी अवधि में यह मात्र 1.69 मिलियन टन था। कुल तेल आयात में अमेरिका की हिस्सेदारी 2% से बढ़कर 7% तक पहुंच गई है—जो कि रणनीतिक बदलाव का संकेत है।
कीमतों के लिहाज़ से, यह और भी रोचक है। इस अवधि में अमेरिकी तेल के आयात का मूल्य 3.78 अरब डॉलर रहा, जबकि 2024 में यह केवल 1 अरब डॉलर था।
हालांकि, यह बात ध्यान देने योग्य है कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उतार-चढ़ाव भी इन आंकड़ों को प्रभावित करता है।
क्यों बढ़ा अमेरिका से आयात?
यह अचानक बढ़ा हुआ व्यापार कोई संयोग नहीं, बल्कि इसके पीछे मजबूत रणनीतिक सोच और कूटनीतिक गणनाएं हैं। दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच 9 जुलाई तक एक अंतरिम व्यापार समझौते को लेकर बातचीत चल रही है। जानकार मानते हैं कि यह तेल आयात भारत की तरफ से एक सॉफ्ट ट्रैक डिप्लोमेसी का हिस्सा हो सकता है।
अमेरिका को भारत के साथ अपने व्यापार घाटे को लेकर चिंता है, और भारत यह दिखा रहा है कि वह इस असंतुलन को कम करने के लिए तैयार है।
वैश्विक संदर्भ में भारत की स्थिति
भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल आयातक देश है और अपनी ऊर्जा जरूरतों का लगभग 85% आयात करता है। पारंपरिक रूप से भारत मध्य पूर्व से सबसे ज्यादा तेल मंगाता रहा है, लेकिन अब वह रूस, अमेरिका और अफ्रीका जैसे वैकल्पिक स्रोतों की ओर भी तेजी से बढ़ रहा है।
यह न केवल भारत की ऊर्जा आपूर्ति को स्थिर रखने का प्रयास है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक संतुलन बनाने की भी एक कोशिश है।
आगे क्या?
अगर भारत और अमेरिका के बीच अंतरिम व्यापार समझौता तय हो जाता है, तो यह न सिर्फ तेल व्यापार बल्कि प्रौद्योगिकी, रक्षा और डेटा नीति जैसे क्षेत्रों में भी सहयोग का रास्ता खोल सकता है।
फिलहाल तो इतना तय है कि तेल के जरिए शुरू हुई यह कहानी भारत-अमेरिका संबंधों को ऊर्जा से भरने का काम कर रही है—शाब्दिक और रणनीतिक दोनों ही रूपों में।