भारत की निर्यात क्रांति: “मेड-इन-इंडिया” इलेक्ट्रॉनिक्स का मेला, पेट्रोलियम को पीछे छोड़ेगा
नई दिल्ली, 31 अक्टूबर 2025: भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात इस वित्तीय वर्ष 2024-25 में रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है, और यह तेजी से देश की निर्भरता वाली पेट्रोलियम निर्यात को पीछे छोड़ने की दिशा में है। Electronics manufacturing तथा स्मार्टफोन निर्यात के इस उछाल से भविष्य की “मेक-इन-इंडिया” चुनौती नए आयाम ले रही है।
मुख्य बातें
- भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात वित्त वर्ष 2024-25 में लगभग US$ 38.6 बिलियन तक पहुंचे।
- अप्रैल-सितंबर 2025 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात 42 % की वृद्धि के साथ US$ 22.2 बिलियन हो गया।
- इसमें से लगभग US$ 10 बिलियन अकेले Apple के iPhone “मेड-इन-इंडिया” उत्पादों का हिस्सा था।
- इलेक्ट्रॉनिक्स अब भारत के निर्यात आंकड़ों में तीसरे स्थान पर आ गया है, और अगले दो-तीन वर्षों में पेट्रोलियम को पीछे छोड़ने की प्रबल संभावना जताई जा रही है।
- सरकार की पीएलआई-स्कीम, आपूर्ति-शृंखला में वैश्विक बदलाव और “चीन + 1” रणनीति इस उछाल के प्रमुख कारण बने हैं।
क्या हुआ?
नई दिल्ली से - भारत की निर्यात दिशा पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बदल रही है। इस वर्ष तक इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात ने अभूतपूर्व गति पकड़ी है, और एक ऐसा मोड़ ले लिया है कि अब देश की ट्रेड डायनामिक्स में यह सेक्टर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। खासकर iPhone मैन्युफैक्चरिंग से मेल खाने वाली गतिविधियों ने भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक्स सप्लाई-चेन का भरोसेमंद स्थान दिलाया है।
प्रमुख तथ्य/डेटा
मार्च अंत तक उपलब्ध आधा-वर्षीय आंकड़ों के अनुसार, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात अप्रैल-सितंबर 2025 में US$ 22.2 बिलियन तक पहुंच गया, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में US$ 15.6 बिलियन था। इस वृद्धि में लगभग आधा योगदान iPhone निर्यात का रहा। दूसरी ओर, पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात में गिरावट दर्ज हुई है: पाँच महीने की अवधि में यह US$ 30.6 बिलियन रही, जो पिछले वर्ष US$ 36.6 बिलियन था। ये आंकड़े यह संकेत देते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर निर्यात के नक्शे-ए-कदम बदल रहा है।
बयान एवं प्रतिक्रियाएँ
उद्योग विशेषज्ञ इस बदलाव को “निर्माण-आधारित निर्यात मूवमेंट” के रूप में देख रहे हैं। एक विश्लेषक ने कहा है कि “भारत ने अब केवल सेवाओं या कच्चे माल के निर्यात की सीमित भूमिका नहीं रहेगी, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उच्च-मूल्य वाली मैन्युफैक्चरिंग में भी वैश्विक जगह बना रही है।”
सरकारी सूत्रों के अनुसार Production Linked Incentive Scheme (PLI) और Electronics Components Manufacturing Scheme (ECMS) जैसे कार्यक्रमों ने घरेलू निर्माण एवं निर्यात को गति दी है।
कुछ आलोचक यह भी कहते हैं कि इस तेजी के साथ आपूर्ति-शृंखला की निर्भरता और प्रतिस्पर्धा का जोखिम भी बढ़ रहा है, खासकर जब घटक और सामग्री अभी भी आयात पर काफी हद तक निर्भर हैं।
वर्तमान स्थिति / आगे क्या?
वर्तमान परिदृश्य में, यदि यह प्रवृत्ति बनी रहती है, तो इलेक्ट्रॉनिक्स अगले दो-तीन वर्षों में भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात श्रेणी बन सकता है-पेट्रोलियम उत्पादों को पीछे छोड़ते हुए। अब आगे के चरण में चुनौती यह होगी कि इस निर्यात-उछाल को टिकाऊ कैसे बनाया जाए:
- निर्माण श्रृंखला में घटक-निर्माण को बढ़ाना, ताकि आधा आउटपुट किस-का आयात न हो।
- बुनियादी ढाँचे (इन्फ्रास्ट्रक्चर) का विस्तार: जैसे Tamil Nadu, Karnataka आदि राज्यों में मैन्युफैक्चरिंग हब्स को मजबूत करना।
- वैश्विक बाजारों में निर्यात-मार्ग खोलना, विशेषकर यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका में।
- विनिर्माण एवं निर्यात में प्रतिस्पर्धा (लागत, श्रम, टेक्नोलॉजी) बनाए रखना।
पृष्ठभूमि / क्यों यह महत्वपूर्ण है
भारत ने लंबे समय तक निर्यात में भारी भू-तेल आधारित अर्थव्यवस्था की ओर झुकाव दिखाया है। लेकिन इस दिशा से धीरे-धीरे हटते हुए मैन्युफैक्चरिंग-आधारित निर्यात की ओर बढ़ रहा है – विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक्स में। इससे अर्थव्यवस्था में कुछ बड़े बदलाव संभावित हैं:
- विदेशी मुद्रा अर्जन में विविधता: पेट्रोलियम की निर्भरता कम होगी, जिससे राजकोषीय जोखिम कम होगा।
- रोजगार सृजन: मैन्युफैक्चरिंग बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न करती है – जैसे स्मार्टफोन फैक्टरीज।
- स्तर-उपकरण विकास एवं तकनीकी क्षमता निर्माण: घटक, एसेम्बली, डिज़ाइन और मूल्य-शृंखला में भारत की भागीदारी बढ़ेगी।
- वैश्विक निर्माण बिल्लियों (supply-chains) में भारत का “चीन + 1” विकल्प बनना: यह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है।
यह बदलाव आज सिर्फ व्यापार के आंकड़े नहीं बदल रहे -बल्कि उन आर्थिक पटरियों को भी मोड़ रहे हैं जिन पर भारत अगले दशक में आगे बढ़ेगा।






