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डिजिटल फ़ुटप्रिंट कैसे मिटाएँ: 5 ऐसे कदम जो आपको ज़रूर लेने चाहिए

नई दिल्ली, 28 अक्टूबर: हम ऑनलाइन जब सोशल मीडिया पर कुछ शेयर करते हैं, जब किसी वेबसाइट पर साइन-अप करते हैं या गूगल पर खोज करते हैं-तो वह सब ‘डिजिटल फ़ुटप्रिंट’ के रूप में हमारी जानकारी छोड़ जाता है। ऐसे में आपको यह जानना ज़रूरी है कि इस फ़ुटप्रिंट को पूरी तरह मिटाना ना के बराबर है, लेकिन उसे काफी हद तक कम करना संभव है। नीचे दिए गए पाँच मुख्य कदम सहायता कर सकते हैं।

मुख्य बिंदु

  • डिजिटल फ़ुटप्रिंट आपके ऑनलाइन क्रियाकलापों से बनता है-जानकर आप बेहद महत्वपूर्ण जानकारी खुद छोड़ देते हैं।
  • इसे पूरी तरह मिटाना लगभग असंभव है, लेकिन कम करना संभव है।
  • अनइस्तेमाल हो रहे खाते, सोशल-मीडिया पोस्ट्स, डेटा ब्रोकर्स से निकासी जैसे कदम आपकी गोपनीयता बढ़ा सकते हैं।
  • गूगल से आप अपनी जानकारी मिटाने का अनुरोध कर सकते हैं-लेकिन यह स्रोत पूरी रूप से साफ़ करना साथ ही बहुत ही चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
  • भविष्य में बेहतर नियंत्रण के लिए पासवर्ड मैनेजमेंट, VPN, ट्रैकर ब्लॉकर्स आदि का उपयोग महत्वपूर्ण है।

क्या हुआ

जब आपने कभी सोशल-मीडिया पर पहचान-संबंधित पोस्ट की होगी, जब किसी ऑनलाइन सर्विस में नाम रजिस्टर कराया होगा, या जब ब्राउज़र में खोजी होगी-तो वो सभी क्रियाएँ आपकी डिजिटल फुटप्रिंट में शामिल हो जाती हैं। समय के साथ ये जानकारी डेटा ब्रोकर्स, सर्च-इंजिन्स, विज्ञापन-नेटवर्क्स और अन्य प्लेटफॉर्म्स के पास संभल कर रह जाती है। एक अध्यय ने बताया है:

“No, you cannot erase your digital footprint, but you can reduce it by deleting inactive accounts…”
इसलिए, सिर्फ जानकारी रहे ना देकर, अंततः आप खुद उसे नियंत्रित कर सकते हैं।

प्रमुख तथ्य / आँकड़े

  • डिजिटल फुटप्रिंट में आपके नाम, फोटो, लोकेशन, सोशल-पोस्ट, इन्टरनेट-खोजें, खरीद-विक्रय आदि सभी शामिल हो सकते हैं।
  • कई अध्ययन बताते हैं कि लाखों लोगों के नाम, पता और फोन-नंबर डेटा-ब्रोकर्स के प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध हैं।
  • गूगल सर्च के माध्यम से “अपने नाम + शहर” टाइप कर देखें-यह आपको यह बताएगा कि कितनी जानकारी पब्लिक रूप से उपलब्ध है।

बयान और प्रतिक्रियाएँ

साइबर-सुरक्षा विशेषज्ञ कहते हैं:

“Your digital footprint is an extension of who you are… while removing it entirely isn’t realistic, you can significantly reduce your exposure.”
एक अन्य टिप्पणी में कहा गया है कि सक्रिय रूप से पुराने अकाउंट्स को डिलीट करना, ट्रैकर-ब्लॉकर का इस्तेमाल करना और लॉग-इन पासवर्ड्स सुदृढ़ करना “डिजिटल-हाइजीन” के लिए अब उतना ही आवश्यक हो गया है जितना कि हाथ धोना या मास्क लगाना।

वर्तमान स्थिति / आगे क्या होगा

अब जब डिजिटल-युग में हमारी छवि और जानकारी प्रतिदिन विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर फैली हुई है, तो फेस-वैलिडेशन, डेटा-ब्रोकर्स, AI-विजिलेंस जैसी चुनौतियाँ बढ़ती जा रही हैं। इसके मद्देनज़र:

  • नए उपकरण और प्लेटफॉर्म उभर रहे हैं, जो “डाटा ब्रोकर्स से निकासी” और “ट्रैकर-नियंत्रण” जैसी सुविधा दे रहे हैं।
  • भारत में भी क़ानून-व्यवस्था इस दिशा में नजरें गहरी कर रही है-जैसे ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ का सिद्धांत न्यायपालिका में चर्चा का विषय बना हुआ है।
  • बिज़नेस-संस्थाएं अब अपने कर्मचारियों के डिजिटल प्राइवेसी-रिस्क को गंभीरता से ले रही हैं-इससे नए प्रोटोकॉल और नीतियाँ आकार ले रही हैं।

संदर्भ / पृष्ठभूमि: यह क्यों मायने रखता है

डिजिटल-फुटप्रिंट सिर्फ तकनीकी शब्द नहीं-यह आपकी प्रतिष्ठा, रोजगार, वित्तीय-सुरक्षा और निजी-गोपनीयता से जुड़ा हुआ वास्तविक मसला है। आज जब एक सोशल-पोस्ट या लीक-ई-मेल भी पूरे करियर पर असर डाल सकती है, तब यह जानना ज़रूरी है कि आप किस तरह “डाटा-ट्रेल” कंट्रोल कर सकते हैं।
इसका मतलब यह नहीं कि इंटरनेट से पूरी तरह गायब हो जाएँ-बल्कि यह कि जानबूझकर सीमित-शेयरिंग करें, अनचाहे-खाते हटाएँ, और प्लेटफॉर्म-कॉन्फिगरेशन को समझदारी से सेट करें। यह कदम न सिर्फ आज बल्कि आने वाले डिजिटल-वित्त, डिजिटल-पहचान और डिजिटल-क्राइम के समय में सुरक्षा-दूरी का काम करेगा।

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।