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ट्रंप प्रशासन इंटेल में 10% हिस्सेदारी लेने की चर्चा कर रहा है, चिप्स एक्ट ग्रांट को इक्विटी में बदलने की योजना

ट्रंप प्रशासन इंटेल में हिस्सेदारी की तैयारी में?

ब्लूमबर्ग की एक ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन इंटेल में 10% हिस्सेदारी लेने पर विचार कर रहा है। यह कदम अमेरिकी सरकार द्वारा चिप्स एक्ट के तहत दिए गए अनुदान को इक्विटी में बदलने की योजना का हिस्सा हो सकता है। ब्लूमबर्ग ने यह जानकारी एक व्हाइट हाउस अधिकारी और अन्य सूत्रों के हवाले से दी।

सोमवार को इंटेल के शेयर लगभग 3.7% गिरकर बंद हुए, हालांकि पिछले हफ्ते अमेरिकी सरकारी समर्थन की उम्मीद में इनमें तेजी देखी गई थी। अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर सरकार कंपनी में 10% हिस्सेदारी लेती है, तो इसकी कीमत करीब 10 अरब डॉलर होगी।


चिप्स एक्ट अनुदान और सरकारी योजना

रिपोर्ट के मुताबिक, इंटेल को चिप्स एक्ट के तहत वाणिज्यिक और सैन्य उत्पादन के लिए कुल 10.9 अरब डॉलर का अनुदान मिलना तय हुआ था। यह रकम सरकारी हिस्सेदारी के लिए पर्याप्त हो सकती है।

हालांकि अभी तक इसकी कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है। इंटेल ने इस पर टिप्पणी करने से इनकार किया है और व्हाइट हाउस ने भी कोई जवाब नहीं दिया। रॉयटर्स भी इस खबर की स्वतंत्र पुष्टि नहीं कर पाया है।


ट्रंप और इंटेल सीईओ की मुलाकात

यह चर्चा उस वक्त तेज हुई जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इंटेल के नए सीईओ लिप-बू टैन से मुलाकात की। ट्रंप ने टैन पर चीनी कंपनियों से संबंध होने का आरोप लगाया और उनके इस्तीफे की मांग की थी।

हालांकि बाद में ट्रंप ने इस मुलाकात को “बहुत दिलचस्प” बताया। ट्रंप पहले भी कॉर्पोरेट मामलों में सीधा हस्तक्षेप करने के लिए चर्चा में रहे हैं। उन्होंने पहले एनवीडिया और एमपी मैटेरियल्स जैसी कंपनियों के साथ भी सरकारी साझेदारी को बढ़ावा दिया है, खासकर सेमीकंडक्टर और दुर्लभ खनिजों के क्षेत्र में।


इंटेल की मुश्किलें और सरकारी समर्थन

विश्लेषकों का मानना है कि सरकारी समर्थन से इंटेल को अपने घाटे वाले फाउंड्री बिजनेस को पटरी पर लाने में मदद मिल सकती है। लेकिन कंपनी अभी भी कमजोर प्रोडक्ट रोडमैप और नए कारखानों के लिए ग्राहकों को आकर्षित करने की चुनौतियों से जूझ रही है।

इंटेल के शेयरधारक और एप्टस कैपिटल एडवाइजर्स के इक्विटी प्रमुख डेविड वैगनर ने कहा—

“अमेरिकी सरकार का एक ब्लू-चिप कंपनी को बचाने के लिए आगे आना इस बात का संकेत है कि इंटेल की प्रतिस्पर्धी स्थिति शायद उम्मीद से भी बदतर है।”

वैगनर ने यह भी कहा कि हालांकि वह सरकार द्वारा टैक्सपेयर्स के पैसे को कंपनियों में निवेश करने के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन “यह इंटेल को पूरी तरह राज्य के नियंत्रण में जाने से बेहतर विकल्प है।”


सरकारी हस्तक्षेप का इतिहास

यह पहली बार नहीं होगा जब अमेरिकी सरकार किसी संकटग्रस्त कंपनी में हिस्सेदारी लेगी। 2007-2009 के वित्तीय संकट के दौरान, सरकार ने जनरल मोटर्स में हिस्सेदारी खरीदी थी, जिसे 2013 में बेच दिया गया।

इंटेल ने पिछले साल ओहायो और अन्य राज्यों में नए कारखाने बनाने के लिए चिप्स एक्ट के तहत करीब 8 अरब डॉलर की सब्सिडी हासिल की थी। उस समय तत्कालीन सीईओ पैट गेल्सिंगर ने इन कारखानों को कंपनी की निर्माण क्षमता बढ़ाने की दिशा में “बड़ा कदम” बताया था।

लेकिन नए सीईओ टैन ने इन महत्वाकांक्षाओं को कुछ हद तक सीमित कर दिया है। उन्होंने ओहायो में निर्माण कार्य धीमा कर दिया और कहा कि भविष्य के कारखाने “मांग के आधार पर” बनाए जाएंगे। विश्लेषकों का कहना है कि यह रणनीति ट्रंप के “अमेरिकी निर्माण को बढ़ावा देने” वाले एजेंडे से टकरा सकती है।


आगे क्या होगा?

कैलबे इन्वेस्टमेंट्स के मुख्य बाजार रणनीतिकार क्लार्क गेरानेन का मानना है कि अमेरिकी सरकार चीन जैसी नीतियां अपनाते हुए इन कंपनियों के उत्पादन पर नियंत्रण चाहती है।

उन्होंने कहा—

“मुक्त बाजार के नजरिए से यह चिंता का विषय हो सकता है, लेकिन व्यवहारिक तौर पर कंपनियां नए प्रशासन के साथ सहयोग करने को मजबूर दिख रही हैं।”

वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले महीनों में यह तय होगा कि इंटेल में हिस्सेदारी लेने का कदम सिर्फ रणनीतिक दबाव है या वास्तव में ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीति का हिस्सा।

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।