चौथे टेस्ट के अंपायरों और ग्राउंडस्टाफ पर उठे सवाल
रविवार की शाम को चौथे टेस्ट मैच के अंपायर आहसन रजा, कुमार धर्मसेना और ग्राउंडस्टाफ के फैसले चर्चा का विषय बन गए। इंग्लैंड को जीत के लिए 35 रन चाहिए थे और उनके पास 4 विकेट बाकी थे, जब बारिश ने खेल रोक दिया। लेकिन कुछ देर बाद बारिश थम गई, और नियमों के मुताबिक, खेल 11:12 बजे IST पर फिर से शुरू हो सकता था। मगर अंपायरों ने 11:00 बजे ही दिन का खेल खत्म करार दे दिया। नतीजा यह हुआ कि मैच पांचवें दिन तक चला गया। इस घटना पर पूर्व क्रिकेटरों नसीर हुसैन और दिनेश कार्तिक ने सख्त प्रतिक्रिया दी।
हुसैन का सवाल: “क्या और कुछ किया जा सकता था?”
स्काई स्पोर्ट्स पर बोलते हुए नसीर हुसैन ने कहा, “सबसे बड़ी बात यह है कि दर्शकों और प्रशंसकों ने इस मैच के लिए अच्छे पैसे खर्च किए। याद रखिए, सोमवार एक कामकाजी दिन है, और इस तरह की सीरीज का अंत ओवल जैसे ऐतिहासिक मैदान पर बड़ी भीड़ के सामने होना चाहिए था। रविवार को ही यह मैच खत्म हो सकता था—या तो इंग्लैंड 35 रन बना लेता, या फिर क्रिस वोक्स को चोटिल होकर पवेलियन लौटते देखते। मैं सोच रहा हूं कि क्या उन्होंने और कुछ किया जा सकता था? उनके पास 42-43 मिनट का समय था, और नियमों के दायरे में रहकर भी खेल हो सकता था।”
कार्तिक ने भी जताई नाराजगी
दिनेश कार्तिक ने भी इस फैसले पर हैरानी जताई। उनका कहना था कि अगर खेल के नियमों में थोड़ी भी गुंजाइश थी, तो अंपायरों को मैच को आगे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए थी। “यह सिर्फ एक टेस्ट मैच नहीं, बल्कि एक बेहद महत्वपूर्ण सीरीज का निर्णायक मुकाबला था। दर्शक, खिलाड़ी, सभी एक नतीजे की उम्मीद में थे। शायद थोड़ा और इंतजार किया जा सकता था,” उन्होंने कहा।
ग्राउंडस्टाफ की भूमिका पर भी सवाल
कुछ लोगों का मानना है कि ग्राउंडस्टाफ ने भी जल्दबाजी दिखाई। बारिश रुकने के बाद मैदान को खेल के लिए तैयार करने में ज्यादा वक्त नहीं लगना चाहिए था। लेकिन शायद रोशनी की स्थिति या पिच की नमी को लेकर चिंता थी। फिर भी, अगर 12 मिनट और इंतजार किया जाता, तो शायद खेल हो पाता।
क्या नियमों में है कोई खामी?
इस पूरे मामले ने एक बार फिर टेस्ट क्रिकेट के नियमों पर बहस छेड़ दी है। क्या ऐसी स्थितियों में अंपायरों को थोड़ी और लचीलापन दिया जाना चाहिए? खासकर जब मैच के नतीजे पर सीधा असर पड़ रहा हो। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि नियम सख्त होने चाहिए, तो कुछ का मानना है कि परिस्थितियों के हिसाब से फैसला लिया जाना चाहिए।
फैंस की निराशा साफ दिखी
सोशल मीडिया पर कई प्रशंसकों ने निराशा जाहिर की। कई लोगों ने कहा कि वे रविवार की रात देर तक मैच का नतीजा देखने के लिए तैयार थे, लेकिन अंपायरों के फैसले ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। और जो लोग मैदान में मौजूद थे, उनके लिए तो यह और भी बड़ी नाकामी थी।
तो क्या यह फैसला सही था? शायद इसका जवाब अलग-अलग नजरिए से अलग-अलग होगा। लेकिन एक बात तय है—क्रिकेट को कभी-कभी इंसानी फैसलों की गलतियां भी यादगार बना देती हैं।