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आंत और दिमाग की गुप्त बातचीत: कैसे बैक्टीरिया आपकी भूख को नियंत्रित करते हैं

क्या आपका पेट दिमाग से बातचीत करता है?

वैज्ञानिकों ने हमेशा से माना है कि पेट सिर्फ भोजन पचाने का काम करता है। लेकिन ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक नए अध्ययन से पता चला है कि हमारी आंतें शायद हमारे दिमाग से रीयल टाइम में संवाद करती हैं। और यह बात हमारे खाने की आदतों को भी प्रभावित कर सकती है।

इस शोध में ‘फ्लैजेलिन’ नामक प्रोटीन अहम भूमिका निभाता है। यह प्रोटीन बैक्टीरिया की पूंछ जैसी संरचना में पाया जाता है। दिलचस्प बात यह है कि हमारी आंतों में मौजूद ‘न्यूरोपॉड’ नामक कोशिकाएं इस प्रोटीन को पहचान लेती हैं। फिर ये कोशिकाएं वेगस नर्व के जरिए सीधे दिमाग को संकेत भेजती हैं।

कैसे काम करता है यह तंत्र?

आंतों में मौजूद न्यूरोपॉड्स में TLR5 (टोल-लाइक रिसेप्टर 5) नामक एक रिसेप्टर होता है। जब शोधकर्ताओं ने चूहों को फ्लैजेलिन की खुराक दी, तो उनके TLR5 रिसेप्टर्स ने भूख कम करने वाली प्रतिक्रिया शुरू कर दी। नतीजा? चूहों ने सामान्य से कम खाना खाया।

लेकिन जिन चूहों में यह रिसेप्टर नहीं था, उन्हें यह ‘पेट भरा होने’ का संकेत नहीं मिला। ऐसे चूहे जल्दी ही मोटे हो गए। इससे पता चलता है कि हमारे अंदर रहने वाले बैक्टीरिया सिर्फ मूक दर्शक नहीं हैं। वे वास्तव में हमारी भावनाओं और व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं।

क्या यह हमारी छठी इंद्री हो सकती है?

यह अध्ययन, जो ‘नेचर’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है, सुझाव देता है कि हमारी आंत सिर्फ एक पाचन अंग नहीं है। हो सकता है कि इसमें एक ‘न्यूरोबायोटिक सेंस’ मौजूद हो जो हमारे खाने के व्यवहार को नियंत्रित करता है। कुछ वैज्ञानिक इसे हमारी छठी इंद्री तक कह रहे हैं।

अध्ययन के वरिष्ठ लेखक डॉ. डिएगो बोहोर्केज़ ने बताया, “हम जानना चाहते थे कि क्या शरीर माइक्रोबियल पैटर्न को रीयल टाइम में महसूस कर सकता है। सिर्फ इम्यून प्रतिक्रिया के तौर पर नहीं, बल्कि एक न्यूरल प्रतिक्रिया के रूप में जो व्यवहार को निर्देशित करती है।”

सिर्फ भूख से ज्यादा असर

इस खोज का असर सिर्फ हमारी भूख तक सीमित नहीं है। अगर माइक्रोबियल प्रोटीन हमारी मस्तिष्क गतिविधि को प्रभावित कर सकते हैं, तो आंत-मस्तिष्क संबंध को समझने से मोटापा, अवसाद और चिंता जैसी स्थितियों के इलाज में मदद मिल सकती है। ये सभी समस्याएं भूख और आंतों के स्वास्थ्य से जुड़ी हुई हैं।

वैज्ञानिक अब यह पता लगाने की योजना बना रहे हैं कि अलग-अलग आहार माइक्रोबायोम को कैसे प्रभावित करते हैं। और यह बदले में हमारे दिमाग को किस तरह प्रभावित करता है।

अगली बार जब आपको ‘गट फीलिंग’ हो…

मानव माइक्रोबायोम में लगभग 100 ट्रिलियन माइक्रोबियल कोशिकाएं होती हैं। यह संख्या हमारे शरीर की मानव कोशिकाओं से भी ज्यादा है। तो अगली बार जब आपको कोई ‘गट फीलिंग’ हो, तो उस पर भरोसा करें। हो सकता है, आपकी छठी इंद्री ही आपसे बात कर रही हो।

(यह लेख द इंडियन एक्सप्रेस के इंटर्न काशवी खुब्यानी द्वारा संपादित किया गया है।)

अमित वर्मा

फ़ोन: +91 9988776655 🎓 शिक्षा: बी.ए. इन मास कम्युनिकेशन – IP University, दिल्ली 💼 अनुभव: डिजिटल मीडिया में 4 वर्षों का अनुभव टेक्नोलॉजी और बिजनेस न्यूज़ के विशेषज्ञ पहले The Quint और Hindustan Times के लिए काम किया ✍ योगदान: HindiNewsPortal पर टेक और बिज़नेस न्यूज़ कवरेज करते हैं।