71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों पर विवाद: उर्वशी और आदुजीवितम को लेकर जूरी के फैसले पर सवाल
71वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। जूरी के फैसलों से असहमति जताने वाली आवाजें लगातार उठ रही हैं। हैरानी की बात यह है कि कुछ पुरस्कार विजेता भी खुद को लेकर किए गए फैसलों पर सवाल उठा रहे हैं। इनमें सबसे प्रमुख नाम मशहूर अभिनेत्री उर्वशी का है, जिन्होंने जूरी के उस निर्णय पर कड़ा विरोध जताया है, जिसमें उन्हें और अभिनेता विजयराघवन को सहायक अभिनेता की श्रेणी में रखा गया, जबकि दोनों फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं निभा रहे थे।
‘आदुजीवितम’ को अनदेखा करना न्याय नहीं
उर्वशी ने निर्देशक ब्लेसी की फिल्म आदुजीवितम – द गोट लाइफ को पुरस्कारों से वंचित रखने पर भी कड़ी नाराजगी जताई। उनका कहना है कि इस फिल्म को शायद जानबूझकर नज़रअंदाज किया गया। उन्होंने कहा—
“वे आदुजीवितम को कैसे अनदेखा कर सकते हैं? प्रित्वीराज ने नजीब की भूमिका के लिए खुद को पूरी तरह बदल दिया था, उसकी पीड़ा को जीया था। सब जानते हैं कि यह एम्पुरान विवाद की वजह से हुआ। पुरस्कार राजनीतिक नहीं होने चाहिए।”
बता दें कि प्रित्वीराज की फिल्म एम्पुरान विवादों में घिर गई थी, जब कुछ दक्षिणपंथी समूहों ने गुजरात दंगों पर आधारित कुछ दृश्यों का विरोध किया था। बाद में फिल्म निर्माताओं ने सेंसर बोर्ड से पास हो चुकी फिल्म में “स्वेच्छा से बदलाव” किए थे। यह फिल्म प्रित्वीराज के निर्देशन में बनी लूसिफर (2019) का सीक्वल है।
मुख्य भूमिकाओं को सहायक श्रेणी में क्यों रखा गया?
उर्वशी ने कहा कि मुख्य भूमिकाओं को सहायक श्रेणी में डालना न केवल अन्याय है बल्कि यह असली सहायक कलाकारों के योगदान को भी कमतर करता है।
उन्होंने सवाल उठाया—
“अगर मुख्य कलाकारों को सहायक श्रेणी में डाल देंगे तो असली सहायक कलाकारों का क्या होगा? उन्हें बेहतर करने की प्रेरणा कहां से मिलेगी? उन्होंने अभिनय को कैसे मापा कि यह मुख्य भूमिका है या सहायक?”
20 साल पहले भी झेल चुकी हैं ऐसी स्थिति
उर्वशी ने खुलासा किया कि यह पहली बार नहीं है जब उन्हें इस तरह की स्थिति का सामना करना पड़ा। साल 2005 में उन्हें फिल्म अचुविन्ते अम्मा के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया था, जबकि उस फिल्म में वह दो मुख्य महिला किरदारों में से एक थीं।
उन्होंने कहा—
“तब मैंने विरोध नहीं किया, क्योंकि उसी साल सारिका जी को परजानिया के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला था। मैं जानती थी कि वह व्यक्तिगत संघर्ष के बाद वापसी कर रही थीं, इसलिए मैंने चुप्पी साध ली थी। लेकिन इस बार मुझे बोलना पड़ रहा है, क्योंकि यह सिर्फ मेरे लिए नहीं, बल्कि मेरे युवा सह-कलाकारों के लिए भी जरूरी है।”
“पुरस्कार सिर्फ प्रतिभा के आधार पर मिलने चाहिए”
उर्वशी का मानना है कि अगर अभी आवाज़ नहीं उठाई गई, तो दक्षिण भारत के कई प्रतिभाशाली कलाकार भविष्य में भी इस तरह की उपेक्षा का शिकार हो सकते हैं। उन्होंने कहा—
“राष्ट्रीय पुरस्कार सिर्फ और सिर्फ प्रतिभा के आधार पर मिलने चाहिए, किसी अन्य कारण से नहीं। मुझे पुरस्कारों की लालसा नहीं है, लेकिन जब पुरस्कार मिलें तो गर्व महसूस होना चाहिए, न कि यह लगे कि कुछ गलत हुआ है। जूरी को दक्षिण भारतीय सिनेमा को हल्के में नहीं लेना चाहिए।”
“मैं डरती नहीं, इसलिए बोल रही हूं”
अंत में उर्वशी ने साफ किया कि उनका मकसद व्यक्तिगत लाभ नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी की राह आसान बनाना है।
उन्होंने कहा—
“मैं यह मुद्दा अपने लिए नहीं उठा रही हूं, बल्कि उन युवतियों के लिए बोल रही हूं जिन्हें भविष्य में यह सब न झेलना पड़े। मैं बोल सकती हूं क्योंकि मैं किसी राजनीतिक दल पर निर्भर नहीं हूं। मैं अपना टैक्स देती हूं और मुझे किसी से डरने की जरूरत नहीं है।”